तुम्हारे प्यार में भीगा हूँ,
तुम्हारे संग हँसा, रोया हूँ!
रामलाल काका के ढाबे पर,
अनगिनत चाय के कप पीयें हैं हमने!
तुम्हारे साथ पीये हर चाय के कप
और पकौड़े का स्वाद ही अलग था!
तुम कैसे भूल गये,
वो सतरंगी सपने,
जो तुम्हारे साथ बुने थे!
लाल, हरे, नीले, पीले,
और न जाने कौन-कौन से रंगों के!
वो ढेरों काग़ज़ की कश्तियाँ,
जो हमनें बारिश के पानी में चलाई थीं!
तुम्हारे पाँव पर की वो गुदगुदी
याद है न तुम्हें!
(मेघा रूठी नहीं रहेगी.....आयेगी, मेरे प्यार का संदेश ले कर...........)
May 24, 2013 at 12.51 A.M.
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