चुपके से आ गई थी,
खिड़की के झरोखे से,
हर ओर रोशनी बिखेरती,
हाँ, वो खुशी ही तो थी!
मेरी उदास आँखों में,
चमकती;
रात में जुगनू की तरह टिमटिमाती,
चांदनी के धागे में पिरोई,
हर साँस को अर्थपूर्ण करती,
हाँ, वो खुशी ही तो थी!
फिर अचानक इक तूफान आया,
इक आँधी आई,
खिड़की के झरोखे से आई,
हर खुशी को अपने संग,
उड़ा ले गई!
इक गुबार सा रह गया था पीछे,
धूल ही धूल हर ओर,
गर्म हवायें,
भीतर तक सब सर्द करतीं!
इक उदासी छायी है,
आसमान ज़रद-ओ-टेसू हुआ जाता है,
दस्तक दे रही है उदासी हर सू,
मानो खुशी ने थामा ना हो हाथ कभी!!!
(भरोसा था खुशी पर जिन्हें, चल दिए आज वो भी उदासियों की ओर......)
May 13, 2013 at 1.58 A.M.
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