अरे, ये क्या कह दिया तुमने?
तुम्हारे साथ ही तो मेरी यात्रा शुरू हुई थी!
मकान घर बनाया था तुमने!
हर कड़वी परिस्थिति से दूर,
तुम्हारे साथ,
तुम्हारे प्यार में मग्न,
सब तो था!
तुम्हारे प्यार ने दिया था,
खुला समुंद्र,
जो मेरी स्वतंत्रा का प्रतीक है!
मैं आज स्वयं को,
इतना ही खुला और स्वछंद महसूस करता हूँ!
और तुम प्रमाण चाहती हो?
प्रमाण यह है
कि आज इन पंक्तियों को लिखने में
कोई झिझक नहीं महसूस हो रही!
अब पहले की तरह,
एक-एक शब्द के लिये भटकता नहीं हूँ!
याद है वो समय,
जब चार लाईनें लिखने के लिये,
शब्द खोजता था!
हाथ काँपते थे,
बदन पसीने से भीग जाता था!
आज तुम्हारे साथ, प्रेम के इस खुले समुंद्र में,
तुम प्रेम की अभिव्यक्ति चाहती हो?
(तुम्हें सर्दी में भी पंखा चलाकर सोने की बुरी आदत है ...आजकल मौसम बदल गया है .....अपना ख्याल रखना .....)
तुम्हारे साथ ही तो मेरी यात्रा शुरू हुई थी!
मकान घर बनाया था तुमने!
हर कड़वी परिस्थिति से दूर,
तुम्हारे साथ,
तुम्हारे प्यार में मग्न,
सब तो था!
तुम्हारे प्यार ने दिया था,
खुला समुंद्र,
जो मेरी स्वतंत्रा का प्रतीक है!
मैं आज स्वयं को,
इतना ही खुला और स्वछंद महसूस करता हूँ!
और तुम प्रमाण चाहती हो?
प्रमाण यह है
कि आज इन पंक्तियों को लिखने में
कोई झिझक नहीं महसूस हो रही!
अब पहले की तरह,
एक-एक शब्द के लिये भटकता नहीं हूँ!
याद है वो समय,
जब चार लाईनें लिखने के लिये,
शब्द खोजता था!
हाथ काँपते थे,
बदन पसीने से भीग जाता था!
आज तुम्हारे साथ, प्रेम के इस खुले समुंद्र में,
तुम प्रेम की अभिव्यक्ति चाहती हो?
(तुम्हें सर्दी में भी पंखा चलाकर सोने की बुरी आदत है ...आजकल मौसम बदल गया है .....अपना ख्याल रखना .....)
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