तुम्हारे सपने,
कब केवल तुम्हारे हो गये,
पता ही नहीं चला!
वो तो हमारे थे--
तुम्हारे-मेरे!
बह चले जब तुम्हारी आँखों से,
मेरी आँखें नम होती चली गयीं!
बाढ़ की तरह बहते तुम्हारे सपने,
कोई मेढ़ न लगा पाया मैं!
पानी पर खत लिखना चाहा था तुम्हें,
बूँद-बूँद हो बिखर गया हर शब्द।
लिखना चाहा तो वही था इतने दिनों बाद,
जो तुम चाहती थी,
जाने क्यों सब नमीं के आगोश में समां,
उड़ता चला गया बादलों के संग!
बरसात के पानी के संग,
पानी पर लिखे शब्द,
छू जाते हैं कहीं आज भी मुझे,
तुम्हारे होने का एहसास दिला,
विलीन हो जाते हैं मिट्टी में!
पानी में लिखा तुम्हें वो ख़त,
अब फटने की हालत में है!
पानी में उदास चेहरा दिखता है,
बह चली है जो अब आँखों से!
(पानी ही तो है..... बह जाने दो--लिखावट तो तुम्हारी है, लिखने का अंदाज़ भी वही है.......)
May 22, 2013 at 1.21 A.M.
कब केवल तुम्हारे हो गये,
पता ही नहीं चला!
वो तो हमारे थे--
तुम्हारे-मेरे!
बह चले जब तुम्हारी आँखों से,
मेरी आँखें नम होती चली गयीं!
बाढ़ की तरह बहते तुम्हारे सपने,
कोई मेढ़ न लगा पाया मैं!
पानी पर खत लिखना चाहा था तुम्हें,
बूँद-बूँद हो बिखर गया हर शब्द।
लिखना चाहा तो वही था इतने दिनों बाद,
जो तुम चाहती थी,
जाने क्यों सब नमीं के आगोश में समां,
उड़ता चला गया बादलों के संग!
बरसात के पानी के संग,
पानी पर लिखे शब्द,
छू जाते हैं कहीं आज भी मुझे,
तुम्हारे होने का एहसास दिला,
विलीन हो जाते हैं मिट्टी में!
पानी में लिखा तुम्हें वो ख़त,
अब फटने की हालत में है!
पानी में उदास चेहरा दिखता है,
बह चली है जो अब आँखों से!
(पानी ही तो है..... बह जाने दो--लिखावट तो तुम्हारी है, लिखने का अंदाज़ भी वही है.......)
May 22, 2013 at 1.21 A.M.
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