CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Monday, May 31, 2010

आईने के सामने बैठी
तलाशती हूँ अपना चेहरा
जो दिखाई नहीं पढता
मुखोटों की धूल तले दबा मेरा चेहरा
न जाने कहाँ खो गया....
कल फिर बैठूँगी इसी आईने के सामने
ख़ुद को तलाशने...
शायद.....
कल ख़ुद से मुलाक़ात हो जाए....(31.05.2010)
तलाश-ऐ-ख़ुद पर निकला था घर से
ख़ुद से मुलाक़ात तो न हो पायी
घर से अलग बेगाना हो गया!!!!(31.05.2010)

Thursday, May 27, 2010

ज़िन्दगी की बिसात

ज़िन्दगी वो ज़ालिम इम्तिहान हैं जो पास किये पास नहीं होता
पता नहीं ज़िन्दगी की बिसात पर
कौन सा मोहरा किस करवट बैठे
और कहाँ मात दे दे
अपनी कपटी चाल से!!!(27.05.2010)
उनके आने से दिल का हर कोना भर गया
और कुछ पाने की चाहत ही नहीं रही!
चले गए जब वो मझधार में छोड़,
दिल का मकाँ वीराँ हो गया!
आज वो नहीं हैं मेरे साथ तो क्या,
कट जायेगा सफ़र-ए-ज़िन्दगी,
उनकी यादों के साथ,
जो आज भी मेरी ज़िन्दगी को महका रहीं हैं!!!(27.05.2010)

Monday, May 24, 2010

तेरे साथ....

तू किन भूल-भूलायिओं में खोया है?
मैं तो सदा तेरे साथ था!
दुखों से हताश जब तू ग़मगीन पड़ा था,
तब भी मैं तेरे साथ था!
जब तू तपती रेट में नंगे पाँव चल रहा था,
और पाँव के छालों के दर्द से तू कराह रहा था,
तब भी मैं तेरे साथ था!
मेरे क़दमों के निशाँ शायद उस वक़्त तुझे दिखे नहीं,
क्योंकि उन दुखों के वक़्त में तू मेरी गोद में था!
तू यह कैसे भूल गया कि मैं तेरे लिए ही हूँ!
जहाँ-जहाँ तू राह भटकेगा,
मैं तुझे वहीँ मिलूँगा,
तेरा हाथ थाम तुझे सही राह पर ले जाने के लिए!!(24.05.2010)

Sunday, May 23, 2010

दोपहर

आग उगलता सूरज,
झुलसती गर्मी,
बिलबिलाते बच्चे,
सड़ते पेड-पौधे,
पनाह माँगते जानवर!
सब आँखें उठाये,
आसमान की तरफ,
हसरत-भरी निग़ाहों से देख रहे हैं!
बरसो रे मेघा बरसो रे!
कब बरसोगे?
कब राहत मिलेगी इस गर्मी के उफ़ान से?
अब तो ठहर जा,
अपने वेग को तनिक कम कर!
माना कि तुम्हारा आग उगलना निहित है,
पर थोड़ा तो रहम कर!
तनिक साँस लेने दे!
जी लेने देने दे थोड़ी सी ज़िन्दगी!
अब तो ठहर जा,
अपने वेग को तनिक कम कर!(23.05.2010)

Thursday, May 20, 2010

मौत

मौत तो निशचित है
एक दिन आनी है सबको!
फिर मौत से कैसा घबराना?
यदि जीवन से मोहब्बत है,
तो मौत से कैसी घृणा?
मौत के डर से
घुट-घुट मरना क्यों?
जीवन का सुखद अंत है मौत!
तो फिर मौत से कैसा इन्कार!!(20.05.2010)

चुप्पी/ख़ामोशी

लफ़्ज़ों का क्या करना है?
बेपर्दा कर देंगे ये,
उन जज्बातों को,
जो सिर्फ नज़रों की बोली समझते हैं!!
उसका दीदार तो,
नज़रों की गहराईओं से होता है!!
खामोश रहने दे मुझे!
न कर लफ़्ज़ों के लिए इसरार!
मेरे साथ है तू न जाने कब से!
तो क्या तू मेरी चुप्पी को नहीं समझता??
लफ़्ज़ों में बयाँ हो बात निकलेगी,
तो लोगों के तानों का सबब होगी!!
मेरी ख़ामोशी ही मेरे प्यार का इज़हार है!
समझ इसे और मुझे चुप रहने दे!!!(20.05.2010)

Saturday, May 15, 2010

मोहब्बत है तो आज़माइश कैसी
जिसके लिए सब कुछ लूटा दिया
उसे अपने मरने का ग़म दे
रुलाना कैसा????(15.05.2010)
ਮੈਂ ਲਭਦੀ ਹਾਂ ਆਪ ਨੂ
ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿਥੇ ਗਵਾਚ ਗਈ
ਹੰਜੂ ਡਿਗਦੇ ਨੇ ਲਗਾਤਾਰ
ਮੇਰੇ ਤਾਤ-ਤਾਰ ਹੋਏ ਜੀਵਨ ਤੇ
ਟਕਰਾਂ ਮਾਰਦੀ ਹੈ ਜ਼ਿੰਦਗੀ
ਕਦੀ ਇਸ ਦੁਆਰੇ
ਤੇ ਕਦੀ ਉਸ ਦੁਆਰੇ
ਪਰ ਹਾਲੇ ਵੀ ਲਭ ਨਹਿ ਪਾਯੀ
ਇਹ ਮੇਰੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ
ਜੋ ਗਵਾਚ ਗਈ ਹੈ
ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਭੀੜ ਵਿਚ!!!(15.05.2010)
मैं बंजर धरती,
प्यासी,
किसका पेट भरूँ!
भूखे-प्यासे बच्चे,
किसको शरण दूँ!
आसमान में,
बादल की हलकी सी आहट हुई!
मैं चौंक गयी!
लगा, कि मुझे तृप्त करने आया है!
मगर, वो मुँह फेर,
निकल गया!
सूखी आँखों से,
एक आँसू भी न छलका!
दिल पर जैसे एक वज्र सा गिर पड़ा!
वो चला गया,
मैं प्यासी ही रह गयी!
बेहाल,अतृप्त,अधूरी!!
मेरे बच्चे उम्मीद-भरी नज़रों से
मुझे देखते हैं!
दिल में इक फाँस सी चुभती है!
स्वयं प्यासी,
हाथ उठा ख़ुदा को कहती हूँ,
"तू भी तो पिता है,
जैसे मैं माँ हूँ!
इन बच्चों को अपने आशीर्वाद से
निहाल कर!
इनकी प्यासी आत्मा को
सकूँ बक्श
कि वो तृप्त हो सर उठा कह सकें--
वाह ख़ुदा तेरी कुदरत,
वाह ख़ुदा तेरी खुदाई!!!"(15.05.2010)

Thursday, May 13, 2010

तेरे हाथों में जो कलम है--
वो भी मेरे ही अस्तित्व से बनी है
तू कहता है मैं सियाही हूँ
हाँ हूँ तो
उस बनाने वाले ने मुझे बनाया है इसी लिए
कि तू अपनी भावनाओं को प्रकट कर सके
मेरे माध्यम से!!!!

सियाही

तुम लिखते हो तो हम भी तनिक कागज़ काला कर देते हैं अपनी सियाही से!!(13.05.2010)

पैगाम

वो चिड़िया तुम्हारे पास कहाँ से आती
वो तो अभी बैठी है मेरे कन्धों पर
जो हवा तुम्हें मेरे होने का पता दे
वो हवा आज कुछ मंद सी है
बादलों कि गरज आई तो थी मेरा पैगाम ले कर
मगर वो भी कहीं खो गयी इस फैले आसमान में
तुम्हारे संग तो मैं सदा से हूँ
फिर क्या करना इन सब से पैगाम ले कर
अपने मन में झाँक कर देखो
मुझे वहीँ पाओगे
जहाँ छोड़ गए थे कुछ समय पहले !!!(13.05.2010)

गठ-बंधन

तुझ में मैं समायी हूँ
मुझ में तू है
हम दोनों का गठ-बंधन
दुनिया को उसकी पहचान देता है
तू मेरा पूरक है
और मैं तेरी
तू नहीं तो मैं नहीं
मैं नहीं तो तू नहीं
एक दुसरे के भीतर रह कर ही
हम जिंदा हैं
और पूरण करते हैं
ईशवर के चित्र को!!!(13.05.2010)