CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Sunday, July 15, 2012

लिखना चाहती हूँ कुछ..........


तुमने लिखने को कहा,
तुम्हारे ही लिए!
लिखना चाहती हूँ,
भूमिका एवं उपसंहार के साथ!
जो मन में है,
सब पन्नों पर उतार देना चाहती हूँ!
शब्दों में बाँधना चाह रही हूँ तुम्हें,
पर जाने क्यों संभव नहीं हो पा रहा बाँधना तुम्हें!

कागज़-कलम ले बैठ गयी हूँ,
शब्द भाग रहे हैं इधर-उधर,
मुझ से पीछा छुड़ा!
कभी छिप रहे हैं किसी कोने में,
कभी जा बैठे हैं अलमारी के पीछे!
सामने आते हैं, पकड़ना चाहती हूँ,
पर जाने क्यों संभव नहीं हो पा रहा पकड़ना इन्हें!!

ढूँढ रही हूँ वो शब्द,
तुम्हें न्याय दे सकें जो!
पिरोना चाहती हूँ शब्दों को अपनी सोच में,
तुम्हें देना चाहती हूँ तोहफे में,
पर जाने क्यों संभव नहीं हो पा रहा पिरोना उन्हें!!!

(महसूस कर सकती हूँ तुमें हर साँस में.. शब्दों में कैसे बाँध लूँ तुम्हें.....)
(( न भूमिका में, न उपसंहार में, कैद नहीं कर सकती तुम्हें शब्दों में.....))
July 15, 2012 at 5.13 P.M.


Friday, July 13, 2012

यादें......


कडवी, खट्टी, मीठी,
आँखों से छलक जाएँ,
सब धुंधला जाता है!

हर खिड़की, हर दरवाज़े से
अन्दर आती हैं!
सरगोशियाँ करतीं, सहलातीं,
रूठ जातीं कभी, कभी खुद मनानें आतीं!

सरगोशियाँ करतीं,
दिल में बसतीं!
लफ़्ज़ों में बयाँ न हो पाएँ जब भी,
चुपके से आ जातीं हैं,
खामोश एहसास की तरह!

बीते लम्हों की यादें,
कठोर, कोमल!
खूँटी से टंगी,
कभी बिलकुल अकेली,
मेरे आने का इंतज़ार करतीं!

(पन्ने पलटते यादों की किताब के...सोचती हूँ--जाने किस गली में ज़िन्दगी से मुलाकात हो जाए.....)
July 13, 2012 at 12.04 A.M.

Sunday, July 8, 2012

छुअन.......


PART II OF ----तुम---बस कह देते-----मैं यकीन कर लेता-----

शब्दों की छुअन तो महसूस की तुमने भीतर तक ..
नर्म से, अपने आगोश में लेते, सहलाते कभी!
अपने पास बिठा, प्यार करते कभी!
और कभी खुरदरे, काँटों भरे,
लहू-लुहान करते, चीरते!

शब्दों को छोड़ चुप्पी आई जब बीच में,
तुम उसे भी समझ न पाए!
खामोशियों में छिपी तन्हाइयाँ
क्यों देख न पाए तुम?


(अपने थे तुम मेरे, सबसे प्रिये, कैसे सोचा तुमने कि शब्द ही सब कह पायंगे........)

मौन बहुत मुखर ...और शब्द हुए मौन.......
July 08, 2012 at 5.14 P.M.

तुम---बस कह देते-----मैं यकीन कर लेता-----


तुमने तो कहा था

प्यार के बंधन में बंध

हम दो से एक हो गए!

अब कुछ कहने की ज़रुरत नहीं,

खामोश होठों की जुबां भी समझ लूँगा!

तुम्हारी हर बात पर यकीन कर,

मैं तुम में रच-बस गयी!

क्या कहना था,

सब समझते थे तुम!

अब कुछ नहीं कहा,

यकीन उठ गया तुम्हारा!

मेरी ख़ामोशी नहीं समझे,

शब्द क्या समझोगे?

अब कहने को कुछ रहा नहीं,

तुम सुन ही नहीं रहे!!!!!!

(आदत हो गयी थी शब्दों की तुम्हें....ख़ामोशी से मेरी तन्हाईयाँ क्या तोड़ते तुम......)

[I had started writing this poem on September 16, 2011 at 5:07pm. Got back to it today, edited and completed it]

July 08, 2012 at 12.17 P.M.

Saturday, July 7, 2012

तेरा देखना.....



तुम्हारी आँखों से खुद को देख,
खुद पर गुमाँ हो आया है!
देखने के तुम्हारे अंदाज़ ने,
खुद से भी प्यार करवाया है!
मेरे दिल, मेरी रूह को,
तुम्हारे देखने से,
सकूँ आता है!
किसी और को देखने की,
कोई चाहत नहीं!
तुम्हारे देखने ने किया है ऐसा जादू,
कि मगरूर हो गए हैं!
अपनी नज़र-इ-इनायत बनाये रखना यूँ हीं,
आपके देखने ने हमें फ़लक तक पहुँचाया है!!!!
July 07, 2012 at 2.59 P.M.

Thursday, July 5, 2012

डर की परिभाषा.......



बेटी का पाणी-ग्रहन संस्कार तय हो गया!
गाड़ी, फ्रिज, ए.सी., फ्लैट स्क्रीन टी.वी.,
लैपटॉप, म्यूजिक प्लयेर, पाँच किलो सोना,
बारातियों के लिए राजसी भोग,
सब कुछ तो माँग लिया था,
लड़के वालों ने!
" अरी भागवान, डर मत,
सब हो जाएगा,
मैं जिंदा हूँ अभी!"

साब से मिन्नत करनी होगी,
दोस्तों के पास भी जाना होगा!
रिश्तेदारों के सामने,
हाथ जोड़ने होंगे!!
डर तो था मन में,
नहीं हो पाया तो.......

माँ तो माँ है,
कैसे न चिंता करे!
डर दुबक कर,
दिल के एक कोने में बैठ सा गया था!
कैसे होगा सब,
आख़िर बेटी के पाणी-ग्रहन का सवाल है?


बिटिया डरी सी,
पिछले कमरे में दुबकी बैठी थी!
घबराहट थी, डर था,
इतना न सहेज पाए बापू,
तो क्या मरना होगा मुझे भी?
क्या बड़ी दीदी की तरह,
गले में फंदा लगा,
लटकना होगा,
पीछे वाले कमरे के पंखे से????


(किसने कहा निडर हो??? सबका डर उनके साथ ही स्वास लेता है हर समय!!!!!!)
July 05, 2012 at 7.21 P.M.

inspired by Maya Mrig's lines---- सोचा, चाहा भी पर ....बहुत डर लगा अपना डर लिखते हुए....

(अपने डर सहेज कर जीता हूं...तुम कहते हो डर डर के जीता हूं... )

जीत तुम्‍हारी..........



कभी कभी लगता है,
ज़िन्दगी ठहर सी गयी है,
किसी के इंतज़ार में,
किसी ख्याल में गम-सुम और खामोश,
कुछ सोच रही है!
किसी भी हड़बड़ी से बहुत दूर,
बस हौले-हौले बहने वाले दरिया के,
कल-कल के समीप सरक रही है,
पुरानी यादों के आगोश में सिमट रही है!
पिछले कुछ दिनों से लगता है,
मैं खुद को तलाशते हुए,
किसी गली में भटक रही हूँ,
जिसके ओर-छोर का कोई अंदाज़ा नहीं!
बस एक हैरानी और विस्मृति का भाव,
चेहरे पर तैरता रहता है!
अचानक से याद आता है--
अरे कहाँ खो गयी मैं?
मुझे उस समय के बारे में कोई स्मरण नहीं,
जैसे मैं नहीं कोई और ,
जी रही थी मेरी ज़िन्दगी,
जिस पर मेरा कोई जोर न था!
एक वीणा की तरह झंकृत और तरंगित,
किसी और के हाथों,
बिना कोई शिकवा या शिकायत,
और कोई सवाल भी नहीं!
अचानक तुमने कहा-
"जीत तो मेरी ही हुई न आख़िर!"


(मैं हैरान थी, मेरे चुप रहने से तुम्हारी जीत कब हुई????)
July 05, 2012 at 4.53 P.M.

inspired by Maya Mrig's post-----जीत के जश्‍न की तैयारी कर लो, आती ही होगी खबर तुम तक....हमें जो हारना था....हार चुके...




Wednesday, July 4, 2012

ज़िन्दगी की उधेड़-बुन............


ज़िन्दगी की उधेड़-बुन में,

कभी मैं उलझी, कभी वक़्त उलझा!

सुई-धागे से,

चाक-ए गिरेबाँ सिलती रही!

थी अजीब सी उधेड़-बुन में,

कच्चा था धागा जान नहीं पायी!

वो कब आया, कब गया, क्या कह गया,

इसी उधेड़-बुन में, कुछ समझ न पायी!!!

शायद वहीँ रास्ते में रह गया कहीं,

कच्चे धागे की डोर से उसे बंधा न रख पायी!

ख्वाबों के सलमे-सितारे टाँकने थे उस धागे से,

न-उम्मीदी की कश-म-कश में,

न ख्वाब. न धागा,

न ज़िन्दगी ही बचा पायी!!!


(टूट गया है धागा, सुई को भी जंग लग गया है--उँगली है लहू-लुहान..ख्वाब हो गए हैं बोझिल--तुम अभी भी कहते हो मुझे सिलना नहीं आता.......

July 04, 2012 at 3.17 A.M.

Tuesday, July 3, 2012

बादल, सूरज, रंग....

डूबते सूरज ने उमड़ आये बादलों को रंग दे दिया,
इन्हीं रंगों से सराबोर मेरा जीवन,
हर रंग के साथ,
अपने वेग से आगे बढ़ता गया!
आज इन बादलों के रंगों से,
मेरे जीवन में कमी नहीं!
हर रंग अपने में खूबसूरती समेटे,
मेरे जीवन को महका रहा है!
आज शाम भी बादलों में,
डूबते सूरज के साथ,
मेरे जीवन के रंग दिखे!
आज फिर एहसास हुआ,
रंगीन है मेरा जीवन,
इन्हीं बादलों और सूरज के कारण!!!!!!
July 3, 2012 at 2.34 A.M.