CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Monday, April 1, 2013

घर का सपना.......


इक घर का सपना देखा था,
अपना इक आँगन होगा, ऐसा सोचा था!
बच्चों की खिलखिलाहट गूँजेगी हर ओर,
मन झूमेगा थाम हँसी की डोर!

घर का सपना तो सपना ही रह गया,
जिम्मेदारियों के ढेर में बह गया!
न घर, न घर का आँगन,
न अपना कहने को कोई प्रांगण!

कीकर के काँटों सी फाँस चुब्ती है मन मैं,
घर की आस दबी जब से मन में!
पथरों से बना शहर है खड़ा मुँह बाए,
मैं बैठा हूँ घर की आस बिसराए!
(This poem is inspired by Maya Mrig's post-- छोटे से घर का सपना मन में घर कर गया जब से----मैदान में कीकर का जंगल कुछ और बढ़ गया----)