CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Thursday, December 20, 2012

कड़वे-मीठे संबंध......




बहुत समय से वक़्त बिता रहे थे साथ,
कितना समय बीत गया, कैसे,
पता ही नहीं चला!
कितनीं बातें,
कितनीं यादें,
मीठी- कडवी,
सब याद था उसे!

मीठी यादों को ताज़ा कर,
जीवन के कड़वेपन को,
साथ मिलकर बाँटा था दोनों ने!
बच्चे बाँटते हैं जैसे सब,
दो दोस्त बाँटते हैं जैसे,
हर सुख-दुःख,
बाँटा था सब उन्होनें भी!

विचारों में,
समानता आने लगी थी!
पढ़ नहीं सकते किसी की सोच को,
पर, विचारों की गहराई,
समझने लगे थे इक दूसरे की!

कहा उसने:
"केवल दो लोग ही समझ पाए मुझे आज तक!
एक तुम और एक मेरा मित्र!"
धड़कन रुक गई,
समाँ ठहर गया,
रगों में खून जम सा गया!
ग़र वो दोस्त था,
तो मैं क्या हूँ?
झंझोड़ कर रख दिया,
इस सवाल ने!

तय नहीं कर पाया मैं,
कि हमारे विचारों में,
एकरुपता किस हद तक थी!
नीम के पत्तों से कड़वी बात,
गले के नीचे कैसे उतरे?
रिश्ते की मिठास को,
निगल गई बात की कड़वाहट!

कहा उसने:
"जिसे वह अपना मानने लगती है,
वह चला जाता है उसे छोड़!"
पर इस बार कोई छोड़कर नहीं जाने वाला उसे,
वह उसे खुद छोड़कर जाने वाली थी!
छोड़ जाने वाली थी,
अपने पीछे,
कुछ कड़वी-मीठीं यादें,
जो रहने वालीं थीं,
हर दम उसके साथ!


(मेरी सजा कितनी लंबी है, यह वक्त भी नहीं जानता! वह इस क़ैदखाने से आजाद हो चुकी थी ......)
 December 20, 2012 at 10.24 P.M.

Monday, December 17, 2012

ख़त


एक-एक लफ्ज़,
हर लफ्ज़ में सिमटी ज़िन्दगी,
कैसे भुला सकती थी वो!
हर लफ्ज़ में हकीकत थी!
आँखों के रास्ते दुःख बह चला था!

सच्चाई की प्रतिधवनि,
गूँज रही थी हर ओर!
सुन्दरता की परिभाषा,
देह से अधिक,
उसके व्यक्तित्व में थी,
समझ चुकी थी वो!

सम्बंधों को खींच- तान कर,
नहीं बनाया रखा जा सकता था,
जान चुकी थी वो!
रेत के महल से ये संबंध,
हवा के झोंकों से टूट,
रेज़ा-रेज़ा हो बिखर सकते थे,
जान चुकी थी वो!

हर लफ्ज़ में,
दिल के रिश्ते,
चट्टानों से भी मज़बूत होते है,
समझ चुकी थी वो!
वक़्त का तूफ़ान,
मुसीबतों की आंधी,
हिला नहीं सकती थी उन्हें,
समझ गयी थी वो!

समाज की बनायीं,
तख्ती पर नहीं टांगना था,
लफ़्ज़ों में छुपे उन रिश्तों को,
जान चुकी थी वो!
संबंधों की लम्बाई-चौड़ाई,
नहीं नापनी थी उसे,
जान गयी थी वो!
लफ़्ज़ों में छुपी गहराई,
समझ गयी थी वो!

(ख़त फटने की हालत में था----लफ़्ज़ों ने संबंधों को सी कर रखा था-------)

December 16, 2012 at 11.38 P.M.

Thursday, December 13, 2012

यादों के पल.......


वक़्त चलता रहा, कुछ साथ रहा, कुछ पीछे छूट गया! 
निरंतर चलता यह क्रम, जाने कहाँ तक बहा कर ले गया! 
दरवाज़े की कुछ आहटें, सरगोशियाँ करती, तुम तक पहुँच गयीं! 
पर्दों से छन कर आती, सूर्य की रौशनी, तुम पर आ ठहर जाती! 
जिंदगी नए पंखों से उड़ान भरती, वक्त के पहिए पर सफर करती, कुछ पल दे गयी!
एक शाम अचानक, पलों का कारवाँ, कहीं पीछे छूट गया!
तुम तक पहुँचने वाली रौशनी, उदासी के में बदल गयी!
ठहरे हुए पल, बेतरतीब पड़े, बस याद दिलाते रहे तुम्हारी!!!!!


(यादों के पल, धुंधले हो, तुम तक आ रुक जाते हैं..........)
(( क्या जरूरी है कि जिंदगी करीने से जी जाए--- उन पलों के बिना..........)) 





(Dec., 2012 at 9.38 P.M.)
मेरे दामन में क्या-कया न डाला तुमने; आसमान कम पड़ गया उसे फैलाने को।। mere daaman mein kya-kya na daala tumne; aasmaan kam pad gaya use phailaane ko......6.04 P.M. (03.12.2012)