CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Sunday, May 20, 2012

तितलियों के पीछे.......

तेरा हाथ अपने हाथ में थाम,
सरसों के खेत में,
तितलियों के पीछे भागते,
एक-दूसरे के साथ से,
आत्म-विभोर होते,
बसंती हवा के दुलार से,
आनंदातिरेक से लहराते फूलों जैसे झूमते,
गुलाब की कली से,
लालिमा चुराते,
गबरू जैसे खिले गेंदे से,
सुन्दरता बटोरते,
सरसों के पीले फूलों से,
मुस्कुराना सीखते,
दोनों हाथ में हाथ लिए,
प्यार में मग्न,
सबकी नज़र बचा,
बस इक-दूजे के लिए,
साथ..........

नखरियाते, लज्जाते कह भी दिया: "हटो जी, क्या करते हो? कोई देख लेगा!"

May 19, 2012 at 11.51 P.M.

Tuesday, May 8, 2012

तुम होते ग़र साथ आज.......




तुम होते ग़र साथ आज,
इस बात पर हँसते,
इस बात पर गुस्सा करते,
किसी बात को लेकर झगड़ते,
किसी बात के कारण मनाते,
तुम होते ग़र साथ आज!
हर लम्हा इक यादगार लम्हा होता,
वक़्त जैसे हमारे लिए ही होता,
न किसी का डर,
न कोई फ़िक्र,
बस तुम्हारा साथ होता,
हाथ में हाथ होता,
तुम होते ग़र साथ आज!
इक आनंदमयी शाम होती,
बस दोनों की बात होती,
तुम होते ग़र साथ आज!!!!
May 8, 2012 at 6.16 P.M.

Sunday, May 6, 2012

श्मशान की स्याही...




जब श्मशान की ओर चल ही दिए,
तो घर का क्या सोचना!
तुम्हारे श्मशान की ओर जाते ही,
भविष्य के सारे ख़्वाब भी राख़ हो गए!
रात भर तुम्हारी याद आती रही,
दिल को यूं ही तडपाती रही!
पर, अब तो तुम्हें न आना था,
न ही तुम आये!
श्मशान जाने वाले रास्ते पर,
रौशनी न थी!
काला सियाह अँधेरा,
तुम्हारे जाते ही,
अपने में सब समेट,
और गहराता चला गया,
मेरे जीवन की स्याही,
कपड़ों की सफ़ेदी से भी,
मिट न सकी!!!!!!
May 6, 2012 at 1.57 P.M.

Inspired by Maya Mrig's post----श्‍मशान से नगाड़ों की आवाज़ आती रही
आधी रात को...।
पीछा करते पांवों के निशान उलटे थे
रास्‍ता घर की ओर लौटता था.....
(यह अलग बात है कि मैं तुमसे भविष्‍य की चर्चा करने आया था... )

Thursday, May 3, 2012

मखमली एहसास.....




रात की मखमली चादर में,
तारों भरे आसमाँ को,
देख मन में इक ख़ुशी की लहर,
अचानक ही उछल पड़ी थी!
इक आधा सा चाँद,
अपनी रौशनी बिखेरता,
दूर आसमाँ में तैरता फिर रहा था!

महसूस कर वो नज़ारा,
आज भी उसकी खूबसूरती,
आँखों को ठंडक दे जाती है!

इक सुबह ,
पक्षियों के चहचहाने में,
सुना था इक राग!
कानों से दिल में बंद कर लिया था उसे,
अपनी तनहियों में सुनने के लिए!

आज भी वो धुन,
जलतरंग सी बजती है,
मन में!

नर्म, हरी घास पर,
ओस की कुछ बूँदें,
कैद कर ली थीं,
दिल के आईने में!

नज़रें झुका,
देख लेती हूँ उन्हें,
मन के भीतर आज भी!

जब चली थी,
ओस-भरी घास  पर,
महसूस की थी पैरों से,
वही नर्मी,
जो थी रात की मखमली चादर में!

इक एहसास,
इक छुअन,
अताम्विभोर कर दिया था जिसने!
आज भी महसूस करती हूँ,
उसी एहसास को,
जो है साथ,
इक मखमली चादर की तरह!!!!!
May 03, 2012 at 12.06 P.M.