CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Sunday, June 7, 2020

मूक...




औरत को दबाना,
अपना हक़ समझते होI
हर हाल में दबाते होI
हर तरह से दबाते होI

कभी पैरों तले,
कभी अपनी कड़वी जुबाँ से निकले
शब्दों से,
कभी मानसिक प्रताड़ना दे कर,
कभी उचित अधिकार मार करI
यहाँ तक कि माँ बनने का हक़ भी छीन लेते होI

माँ बनना तो उच्त्तम अधिकार है उसकाI
फिर क्यों ऐसा दुर्व्यवहार करते हो?

माँ बनने के बाद औरत मर्द के संग रहे रहे,
ये भी उसी का निर्णय हैI
तुम क्यों समाज के ठेकेदार बन,
उस पर अपनी हर बात, हर मर्ज़ी,
थोपते हो?

बच्ची जन्मी हैI
मातम मत करोI
खुशियां मनाओI
मैं कर लूंगी उसकी देखभाल,
स्वयंI
तुम्हारी आवश्यकता नहींI
ही तुम्हारे नाम कीI
मेरी बच्ची है,
मेरे नाम से ही बढ़ेगीI

पर तुम कहाँ समझ पाओगे?
तुम्हें कहाँ ये बात हज़म होगी,
कि मैं सक्षम हूँ
उसे पालने, सँभालने
और बढ़ा करने मेंI

तुम नहीं समझ पाए,
आदमी या औरतI
पर एक किन्नर ने समझ लियाI
कहा कि मेरी बिटिया हैI
मेरी ही रहेगीI

हर बार रोड़े अटकाएI
हर बार घृणा भरी नज़रों से देखाI
घृणा से लबालब शब्दों के नश्तर चलाएI

एक लहर आयी है,
मुझे डूबाने के लिएI
एक जवार उठी है,
मुझे बहा ले जाने के लिएI

लगता है टूट गयी हूँ फिर से,
कि कहने को कुछ नहीं बचा हैI
मेरी आवाज़ तुम्हारी घृणा की गड़गड़ाहट में
डूब गई हैI

पर मैं रो नहीं सकतीI
मैं टूट नहीं सकतीI

जब-जब तुम कोशिश करोगे,
मेरी आवाज़ को बंद करने की,
मुझ पर प्रहार करने की,
मैं चुप नहीं रहूँगीI

हालांकि तुम मुझे चुप रखना चाहते होI
और जब भी तुम कोशिश करते हो,
मैं काँप जाती हूँI


पर मुझे पता है कि मैं अनिर्वचनीय नहीं रहूँगीI
पर मुझे पता है कि मैं अनिर्वचनीय नहीं रहूँगीII
(June 7, 2020 at 6.05 P. M.)


मर गई इंसानियत.......




क्रमागत उन्नति के कारण
तुम सीढ़ी के सबसे ऊँचे पायदान पर हो,
क्योंकि तुम सोच सकते हो,
समझ सकते हो,
उन्नत होI
फिर ये कैसी बर्बरता?
मुझे जीने का हक़ नहीं क्या?
और वो नन्ही सी जान,
जो मेरे अंदर पल रही थी,
क्या उसे इस दुनिया में नहीं आना था?
मैं तुम सब से पूछती हूँ,
उन सब से पूछती हूँ,
जो ख़ुद को इंसान कहते हैंI
इस धरती पर हमारा कोई अधिकार नहीं?
विश्वासघात किया तुमनेI
फल में पटाखे छुपा रखे थेI
खा गई मैं
कि भूखी थीI
मैं तो सदा तुम्हारे काम ही आईI
कभी नुक्सान नहीं पहुंचायाI
ये सिला दिया तुमने?
वह रे इंसान!
कभी जंगली सूअर समझ कर मारते हो,
कभी माँ बनने वाली हथिनी को,
कभी बाघ, तो कभी गाय,
व्हेल, डॉलफिन, हिरन,
मारते तो हो सबकोI
इंसानियत, करुणा, दया,
सब तो ख़त्म हो गई है तुम मेंI
और, अब मेरे मरने पर,
राजनीती करनी हैI
अपने अमानवीय कृत्य को जो छुपाना है तुमनेI
जंगली कौन है,
मैं या तुम?
माँ बनने का हक़ तो औरत से भी छीन लेते हो,
ग़र पता लगा लेते हो
कि बेटी जन्म लेगी उसकी कोख़ सेI
कभी तो इंसान बन कर दिखाओI
कभी तो दिखाओ
कि हृदय धड़कता है तुम्हारे सीने में?
कभी तो दिखाओ
कि तुम्हारी रगों में बहते
लहू का रंग आज भी लाल है?
सफ़ेद पड़ गया है,
यकीन है मुझेI
इंसानियत को शर्मसार किया तुमनेI
तुम तो जानवरों से भी बत्तर होI
इंसान कहते हो ख़ुद कोI
पहले इंसान कहलाने के काबिल तो बनोII
(June 7, 2020 at 4.50 P. M.)