CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Saturday, April 30, 2011

teri beparwayihaan/तेरी बेपरवायिआं

teri beparwayihaan ne hi te maar ditta
main tarle kar-kar haari haan.
je toon nahin si dena pyar mainu
kyon meriyaan waadhaiyaan saan!!!
तेरी बेपरवायिआं ने ही ते मार दित्ता
मैं तरले कर-कर हारी हाँ!
जे तूँ नहीं सी देना प्यार मैनू
क्यों मेरियाँ उमीदाँ वधाइयां सन!!!
April 30, 2011 at 2.02 P.M.

तेरा साथ......

सब कुछ है फिर भी न जाने किस चीज़ की कमी है?
तेरे साथ हूँ सदा, फिर भी क्यों तन्हाई है?
खिलखिलाता हूँ तेरे साथ और हँसता भी तेरे साथ,
फिर भी न जाने क्यों हर रात आँखों में नमी है?
तुम हो फिर भी न जाने क्यों दिल का दरवाज़ा बंद है?
अब यह एहसास है,
कि तुम हो मेरे साथ,
पर मैं फिर भी अकेला हूँ!!!!!
April 30, 2011 at 9.33 A.M.

Wednesday, April 27, 2011

भ्रष्टाचार

रूस हमारा मित्र है
उसके उधाहरण का पालन करना है!
गर रूस है भ्रष्टाचार में सबसे आगे
तो हम क्यों न उसके पीछे भागें?
भ्रष्टाचार है नारा हमारा
पैसा खायेंगे सारा का सारा
मेहनत से घबराते नहीं
हमने तो नहीं कहा हम खाते नहीं
हर कदम भ्रष्टाचार के लिए बढ़ाएंगे
अपने देश के लिए नाम कमाएंगे!!!!
April 27, 2011 at 8.05 P.M.

Monday, April 25, 2011

बूंद सी जिन्‍दगी

बादलों की गर्जन हुई,
एक पल के लिए उसका दिल कांप गया!
संकुचाई सी,
अपने प्रियतम के आगोश में समां गयी!
उसकी छाती से लग,
धड़कन और बढ़ गयी!
होंठों की कंपन बढ़ी,
नज़रें झुक गयीं!
पर उसने अपना दामन झटक लिया!
उसके प्यार को रुसवा कर दिया!
होठों की कंपन में उसे लाचारी दिखी!
झुकी नज़रों में बेचारगी दिखी!
उसके प्यार को समझ न पाया,
अकेला उसे छोड़ चला गया!
बादलों की गर्जन से,
अब दिल डरता है!
बारिश की बूंदों से,
मन पिघलता है!
होंठ मौन हैं अब,
आँखें वीरान सी,
झुकती नहीं!
वो मूरत है अब पत्थर की,
प्यार के लिए दे दी जिसने ज़िन्दगी!!!!
April 25, 2011 at 6.36 P.M.

Friday, April 22, 2011

विचारो-एहसास

मन में उत्पात मचाते विचारों को,
दिल की गहरायिओं में छिपे एहसासों को,
कागज़ पर उतारते हैं!
विचारो-एहसास शब्द बन जाते हैं!
कुछ अपने लिए,
कुछ दूसरों के लिए,
इन्हीं शब्दों के सहारे,
जीए चले जाते हैं!!!
April 22, 2011 at 9.15 A.M.

Wednesday, April 20, 2011

Pehchaan

tumhaari pehchaan tum khud ho
khud ko dhoondoge to apni pehchaan bhi mil jaayegi.
April 20, 2011 at 10.26 P.M.

Tuesday, April 19, 2011

तुम..

तुम हो भी साथ
और नहीं भी
सामने भी हो
और आँखों से ओझल भी
तुम्हारे शब्दों को समेट
अपनी झोली में
चली आई
कि जब तुम नहीं
तो तुम्हारे शब्दों के साथ
वक़्त गुजरेगा
अच्छे, बुरे,
प्यार भरे,
कुछ अपने में कई कटाक्ष लिए
कुछ अपने में मेरा पूरा संसार समेटे
तुम्हारे साथ की दुहाई देते
पर यह दिल है कि कहता है
कि तुम नहीं हो
कहीं नहीं हो.....
April 19, 2011 at 5.23 P.M.

अंतर्द्वंदव्

अंतर्द्वंदव् से जूझते
जीवन की डगर पर चलते
कभी हब्शी
कभी मानस
कभी पत्थर
कभी पारस
कभी इन्सां
कभी भगवान्
अपनी पहचान खोजते
सब चलते जा रहे हैं
बस चलते..
April 19, 2011 at 4.26 P.M.

Thursday, April 14, 2011

Concrete Jungle

Concrete jungle,
smothering life.
Huge, steel chimneys,
spewing out smoke,
suffocating.
Nights foggy,
days smogy.
Buildings mere structures,
strangling everyone in their wake.
Noisy streets,
stifling voices.
The fragile frame of psyche,
being killed steadily.
Asphyxiated life,
no respite,
no recourse,
but to die sluggishly.
April 14, 2011 at 10:21 P.M.

Sunday, April 10, 2011

Who Am I?

Who am I?
Am I who I think I am?
Or, am i who others think me to be?
Or, am I actuaaly who I am?
I am three persons rolled into one.
The one I think I am
The one others think I am.
And, the one I actually am.
June 27, 2001 at 12.42 A.M. London time

उदारता

उसकी रज़ा मान,
मैं चलती रही!
न पैरों के छाले देखे,
न उनसे रिसता खून ही दिखा!
छलनी हाथों से राह के,
काँटे हटाती रही!
जानती थी वो मेरे साथ है!
छालों से रिसता खून मेरा न था!
हाथों में काँटों की चुभन भी मेरी न थी!
जानती थी की वो दयावान है!
मन में उसकी उदारता का विश्वास लिए,
मैं चलती रही!!!!
April 10, 2011 at 5.36 P.M.

Thursday, April 7, 2011

सपने बस सपने....

मंद हवा की तरह
गालों को सहलाती
तितली की तरह
यहाँ से वहाँ उड़ती फिरती
एक अल्हड़ मौज
जो किनारे को छू लौट आती
मन में जवानी की लहक
आखों में यौवन की चमक
साँसों में जीवन की महक
इसी लहक, महक, चहक में
बचपन कहीं पीछे छूट गया
उड़ती आज भी हूँ
पर पंखो का रंग फीका पड़ गया है
चहकती हूँ
पर दर्द छुपा नहीं पाती
जीवन की सड़न है
अब महक में
टूटे हुए सपने
रिसते हैं हर पल
April 07, 2011 at 4.14 P.M.