CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Tuesday, June 26, 2012

शर्मनाक है यह भी......


समाज तय करता है,
अच्छी बहू, अच्छी पत्नी!
अच्छी माँ केवल बच्चे ही पहचान पाए!

अपनी महत्वाकांक्षाओं , सपनों, सुखदुख..और भूख प्यास को
बेटी पर न्योछावर करती!
केवल उस में जीती,
उसके लिए मरती!

बेटी लेकिन दादागिरी से,
अपनी ताकत और महत्व दिखाए!
अब माँ लहू में डूबी
अपने अंतर्मन को कैसे समझाए?

एक नयन संजीवन उसका,
एक नयन था हालाहल,
जितना कठिन खड्ग था कर में,
उतना ही अन्तर कोमल।

दावानल - सा जल रहा था,
हृदय में खून का हर कतरा!
भीषण अन्धकार था चहूँ ओर,
धुंआ, धुंआ, धुंआ.....

विस्फोटक और उग्र थे,
बेटी के कटाक्ष!
पागल कुतिया की तरह मार देने योग्य,
ऐसा मन में आया था!

द्वार पर आहट हुई,
छिन्न-भन्न होकर भी पुनः खुद को चुनती-बीनती, स्वस्थ व संतुलित करती,
स्वयं को समझती!
दुःख का अथाह सागर उसके सम्मुख ठहर ना पायेगा.
मान लिया कि तनिक गिरी थी,
पर उठने की अब ठानी है!
नहीं टूटूंगी क्योकि हर पीड़ा से ऊपर उठाना है,
आँसू पी कर भी जीवन को जीना है..............
June 26, 2012 at 12.25 A.M.






Thursday, June 21, 2012

लाल बत्ती का नशा...........


भोंपू, लाल बत्ती वाली गाड़ी का,
ज़ोर से बोल उठा-
"हट जा मेरे रास्ते से,
मैं कौन हूँ पता नहीं क्या?"
वातानाकूलित गाड़ी में बैठे अफसर जैसे,
लाल बत्ती भी अफसरी झाड़ने से बाज़ न आई!

लाल बत्ती के भीतर बैठा आँखों से अँगारे उगलता,
चेहरे पर परम शान्ति का मुखौटा ,
अपने होने के अर्थ को देख खुश होता है
भीतर ही भीतर
जाहिर नहीं करता .....

खुश दिखने के ढेरों उपकरण हैं उसके पास
इतने तनाव में क्‍यूं रहता है फिर ...किसी को क्‍या पता...
सब बंदगी में हैं उसकी,
बंदों की जात बंदगी के लायक देवता ढूंढ ही लाती है....


और कमाल है....लाल बत्‍ती रोशनी से ज्‍यादा शोर करती है...
तब भी कितनी चमक रहती है....कितनी दमक रहती है
उसे चलाते ड्राइवर के चेहरे तक पर....

असमंजस में हूं लाल बत्‍ती की गाड़ी में बैठे
उस शख्‍स से भी बड़ी क्‍यों है बत्‍ती....
June 21, 2012 at 6.03 P.M.


समझदारी का सफ़र....... / नासमझी से समझदारी तक.....


नासमझ थे,
बच्चों से खिलखिलाते थे,
न चिंता, न फ़िक्र,
बस नासंजझी और अल्हड़पन!
जीवन था मुस्कुराहटों से भरा,
हर ओर खिले थे फूल सदा!
फिर अचानक,
हवा का रुख बदल गया,
वक़्त ने करवट ली,
समझदारी ने दस्तक दी!
आवेगिता छुर्र हो गयी!
तोल-मोल कर बोलने लगे सब,
हँसी की जगह चिंता घिर आई मन में!
माथे पर सलवटें,
आँखों में गुस्सा,
जीवन नीरस,
अटपटा सा!


समझ ने बौना बना दिया ...या रब......
ये समझ तू वापस ले ले अब .........
June 21, 2012 at 12.02 A.M.

Wednesday, June 20, 2012

भौतिकता से परे....


भौतिक शरीर की लालसा,
देह की पिपासा,
बरसों बीत गए,
इसे बुझाने में!

कभी दौलत से,
तो कभी मकानों से,
कभी शरीर की भूख,
कभी मन का लालच!

जाने क्यों नहीं उठ पाया,
इन से ऊपर!
सोचता था,
यही है सब,
इसी से मिलेगा स्वर्ग!

आज जब खुद से बात की,
तो पहचाना,
नश्वर है सब,
सब मिट्टी में है मिल जाना!

मूर्ख था,
न समझ पाया,
इस गूढ़ सत्य को,
आत्मा परे है इन सब से,
उसी निराकार का हिस्सा है,
जिस ने बनाया है सब को!

इक अजीब सा नशा है,
इस भौतिकता से परे,
इक ख़ुशी, इक शांति,
इक सकूँ, इक ठहराव!

अब जो चल पड़े हैं इस सफ़र पर ऐ दिल-इ-नादाँ....मंजिल तो पा ही लेंगे हम.............

शरीर तो जल जाएगा, ख़त्म हो जाएगा--आत्मा चिरायु है--कभी नष्ट नहीं होगी... मिलाएगी वोही उस परमात्मा से, जिसने जन्म दिया था इस आत्मा को, एक नए शरीर में, इस संसार को भोगने के लिए......
June 20, 2012 at 2.56 A.M.

Tuesday, June 19, 2012

शब्दों की कहानी..


शब्द तुम्हारे भी,
शब्द मेरे भी!
भावनाएँ जुड़ी हैं हमारी
उन शब्दों से,
जुड़वाँ बच्चों की तरह!
एक सी शक्लें,
एक सी आदतें,
सब तो एक ही जैसा था!
फिर कैसे कह दिया तुमने,
"अपने शब्द समेट लो,
समझ नहीं आते,
क्या कहना चाहते हैं अब?"

भुला दिए हैं तुमने शब्दों में छिपे किस्से.... जिए थे साथ जो हर शब्द के माध्यम से, इक मीठी याद की तरह.......

ना समेटे शब्द
समेटा खुद को मैंने ....
पसर गयी नीली हो वितान मे
ओस बन ....हरियाली पर ..
कितने छोटे हैं तुम्हारे हांथ ...
क्या अब भी छू सकते हो तुम ?
June 19, 2012 at 12.02 A.M.




Monday, June 18, 2012

रोज़-रोज़ मरती.......


बंजर हो रही है धरती,
पानी माँगती,
आसमान की ओर देखती,
बाहें फैलाए,
पानी के आलिंगन को तरसती,
अपने ही बच्चों के हाथों मरती,
सौतेलेपन का एहसास सहती,
चुपचाप जलती,
रोती, कराहती, बिलबिलाती,
रात किसी तरह निकाल,
सुबह फिर सूरज की आग में जलने को तैयार,
पानी के बिना जीवन जीती, मरती......

बंजर हो रही सुखना झील, घुट-घुट मरती.......
June 18, 2012 at 8.02 P.M.





Sunday, June 3, 2012

मन की प्यास....




















इक प्यास है मन में,
किसी चश्मे के शीतल जल से नहीं बुझती!
चश्मा-ए-अमृत है धरती के गर्भ में समाया,
जहाँ तक कोई राह नहीं ले जाती!!

उसकी सरगोशी भरी आवाज़ कानों में पड़ती है,
मानो कह रही हो: " मेरे पास आओ! सब ठीक हो जाएगा!"
मेरा मन तो भारी है!
तुम्हारे न होने से परेशान है!
सोचा था कि प्यास एक जैसी होगी हम दोनों की,
तुमने कहा: " कुआँ मैं खोदूँगा तो पानी भी मेरा!"

पता नहीं फ़र्क कैसे आया हम दोनों में--
तुमने कुआँ खोदा औजारों से,
मैंने तो सब दे दिया था अपनी प्यास को....


और जो बचा ....उसे भी ना संभाल पाए तुम ?
June 03, 2012 at 12.30 A.M.

Saturday, June 2, 2012

संगदिल सनम......







आज महफ़िल में बुलाया है तुमने,
गैरों से हँस कर बात यूँ सताया है तुमने!
परवाने जैसे जलते रहे,
तुम्हारी शमा-नुमा महफ़िल में,
हमारे जलने को,
यूँ नज़रंदाज़ किया है तुमने!
तेरी महफ़िल में आये थे तेरे दीदार को,
गैरों की बाँहों में जा,
यूँ सितम किया है तुमने!!
दिल की आग बुझाने आये थे हम,
गैरों के लिए तुम्हारी हंसी ने,
दिल को यूँ जलाया है तुमने!!!
इतने संगदिल हो यह न जानते थे,
इस तरह तड़पाया है तुमने!!!!
June 02, 2012 at 1.30 A.M.