कौन हो तुम?
तुम्हारी
आँखों का दुःख दिख रहा है।
आँसुओं
की बहती धारा,
तुम्हारी
दास्ताँ बयाँ कर रही है।
तुम्हारे
शब्द लड़खड़ा रहे हैं।
तुम्हारी
आवाज़ की थकावट सुनाई दे रही है।
कौन
हो तुम?
जानी-पहचानी
सी लग रही हो।
मंदिर
की हर मूरत में तुम हो।
कवी
की प्रेरणा तुम हो।
तुम्हारी
छवि हर लड़की, हर माँ में दिख रही है।
फिर
भी लगता है कि तुम नहीं हो,
कि
कुछ नहीं है तुम्हारे पास।
कौन
हो तुम?
कहाँ
से आई हो?
क्या
अस्तित्व है तुम्हारा?
क्या
नाम है?
आवाज़
है क्या?
कोई
तो पहचान होगी?
कोई
घर, कोई देश?
कहो
तो, कौन हो तुम?
मैं,
मैं वो हूँ,
जिसे
तुम्हारे शब्दों ने बाँध रखा है।
मैं
वो हूँ,
जो
तुम्हारे रीती- रिवाज़ों में क़ैद है।
मैं
वो हूँ,
जिसे
तुम्हारे पितृ-सत समाज ने बेड़ियों में जकड़ रखा है।
मैं
सब हूँ।
मैं
वो हूँ,
जिसे
बैठने के, खड़े होने के,
बात
करने के, हँसने के, सोचने के,
तरीके
तुमने सिखाए हैं।
मैं
वो हूँ,
जिसकी
पहचान तुमने अपनी सोच से बनाई है।
मैं,
मैं सब हूँ।
मैं
वो हूँ,
जिसके
जिस्म को तुमने बेचा है।
मैं
वो हूँ,
जिसकी
रूह को तुमने तार-तार किया है।
मैं
वो भी हूँ,
जिसके
साथ तुमने रंग-भेद किया है।
मैं,
मैं सब हूँ।
मैं
वो हूँ,
जिसे
तुमने पैदा नहीं होने दिया।
मैं
वो हूँ,
जिसे
तुमने पैदा होते कूड़े के ढेर में, गन्दी नाली में फ़ेंक दिया।
मैं
वो हूँ,
जिसे
तुमने पैदा होते ज़हर दे दिया।
मैं
सब हूँ।
मैं
वो हूँ,
जिसे
तुमने मारा-पीटा, गालियाँ दीं।
मैं
वो हूँ,
जिसे
तुमने ज़िंदा जला दिया।
मैं
वो भी हूँ,
जिसे
तुमने त्याग दिया।
मैं,
मैं सब हूँ।
मैं
वो हूँ,
तुमने
जिसके पंख काट दिए हैं।
मैं
वो हूँ,
जिसे
तुमने पिंजरे में बंद कर रखा है।
मैं
वो हूँ,
जिसकी
आवाज़ तुमने गले में घोंट दी है।
मैं,
मैं सब हूँ।
मैं
वो हूँ,
जो
चीखना चाहती है।
मैं
वो हूँ,
जो
चिल्लाना चाहती है।
मैं
वो हूँ,
जो
अपने होने का एहसास करवाना चाहती है।
मैं,
मैं सब हूँ।
तुम
कहते हो जानी-पहचानी हूँ।
मंदिर
की हर मूरत सी हूँ।
कवी
की प्रेरणा में भी हूँ।
हर
बेटी, हर माँ में मेरी छवि है।
फिर
क्यों नहीं पहचानते मुझे?
क्यों
पूछ रहे हो
कौन
हूँ मैं?
बहती
नदी की अविरल धारा सी बहना चाहती हूँ।
स्वछंद
आसमाँ में उड़ना चाहती हूँ।
अपनी
पहचान, अपना अस्तित्व बनाना चाहती हूँ।
दिखा
देना चाहती हूँ,
कि
जितना भी पैरों तले रोंदो,
फ़ीनिक्स
जैसे फिर से उठ खड़ी हो,
मैं
सब को अचंभित करना चाहती हूँ।
बता
देना चाहती हूँ,
तुम
सब बे-आवाज़ों की आवाज़ मैं हूँ।
अब
और न दबा पाओगे मुझे।
मेरे
होने को और न नकार पाओगे।
कि
हर लड़की, बहन, बेटी, माँ, औरत में,
मैं
हूँ।
(January 31, 2021 at 12. 28 P. M.)