CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Wednesday, May 27, 2020

कुठाराघात


तुम सदियों से समाज के ठेकेदार थे,
न चलने का हक़ दिया,
न मुस्कराने का!
न हँसने का,
न बात करने का!
न आज़ादी दी,
न उड़ने दिया!
जीने का हक़ तो छीना ही था,
पैदा होने का हक़ भी छीन लिया!
तुमने कभी नहीं पूछा,
मैं क्या चाहती हूँ?
कभी जानने की कोशिश नहीं की,
क्या ला सकता है मेरे होठों पर मुस्कान?
अपने से दो कदम पीछे रखना,
आदत थी तुम्हारी!
सब ले लिया,
अस्तित्व तक ख़त्म कर दिया!
ऐसे में तुम में से एक ने कहा,
'मुझे फर्क पड़ता है!
तुम्हारा होना मायने रखता है!'
मरने से डरती नहीं थी वो,
रोज़ मरती थी!
उस एक की बात ने,
मुस्कान ला दी होठों पर!
जी सकती थी,
मरते हुए भी,
उस एक बात ने,
मायने दे दिए थे ज़िन्दगी को!
सब बदल गया था,
जी सकती थी अब,
अपनी मुस्कुराहटों के साथ!
क्योंकि जीना सिखा दिया था उसने!
(July 4, 2016 at 1.00 A. M.)

कुठाराघात

Tuesday, May 26, 2020

woh kehte hain ki yaad karne ke liye koi alag se pramaan nahin dena padta,
kambakht ek hichki bhi nahin aayi din bhar!!!!!!!
वो कहते हैं कि याद करने के लिए कोई अलग से प्रमाण नहीं देना पड़ता,
कमबख्त एक हिचकी भी नहीं आई दिन भर!!!!!!!
(July 28, 2011 at 5.22 P. M.)
Heavy rain.
A mother bathing her young son.
Water everywhere.
(August 5, 2019 at 3.02 P. M.)

साये


उसकी ओर आते वो काले साये,
खूँख़ार, डरावने!
वो रूह को छलनी कर देने वाली
हँसी!
वो जिस्म से कपड़ों को तार-तार करने वाले
हाथ!
वासना का नंगा नाच!
विभस्त नज़ारा!
तुम क्या अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाओगे?
तुम्हें तो केवल जिस्म नोचना आता है!
तुम तो केवल अंतर्मन को घायल कर सकते हो!
जाओ पहले श्राप दे,
पत्थर में बदलना बंद करो;
अग्नि- परीक्षा लेना बंद करो;
धरती में समाने पर मजबूर न करो;
भरी सभा में जाँघ पर बिठाने का विचार त्यागो;
चीर- हरण सी घिनौनी हरकत से खुद को रोको,
चलती बस में बलातकार कर,
मेरे अन्दर लोहे की सलाखें न डालो!
जिस दिन इस सब से ऊपर उठ जाओ,
उस दिन राष्ट्रिय, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना!
इस से पहले मत ढोंग करो
कि तुम मुझे समान मानते हो!
मत कहो कि मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो!
करना है तो अपने अन्दर कि वासना को मारो
और फिर मनाओ महिला दिवस हर रोज़!!!! 
(March 09, 2017 at 3.37 A.M.)

मेरी शख्सियत


दुनिया जलाती रही, वो जलती रही!
दुनिया मारती रही, वो मार खाती रही!
उसे लोगों को त्यागना नहीं आता था!
उसे तो केवल लोगों की अच्छाइयों में विश्वास था!
उसे तो बस माफ़ करना आता था!
छोड़ कर जाना उसने कभी सीखा नहीं था!
लोग आते गए,
उसका फ़ायदा उठा , उसे छोड़ जाते गए!
पैरों तले मसल उसे, दुत्कारते रहे!
फिर एक दिन कहा उसने खुद से,
'और न दुतकारी जाऊँगी!
इन सबको छोड़ जाना ही,
एकमात्र विकल्प है!
इनको त्यागना ही होगा,
कि दिल अब छलनी-छलनी है!
जला कर रख दिया है,
जिन्होंने मेरे वजूद को,
बारूद बन अब उनको ही मिटाना होगा!
मिटाई है जिन्होंने मेरी हस्ती,
अब उन्हें आइना दिखाना होगा!
मैं हूँ, मेरा अस्तित्व भी है,
इस बात से जिन्हें इनकार था,
अब उन्हें अपनी शख्सियत से रु-बरु करवाना होगा!
जान ले तू ऐ सितमगर,
अब चिड़िया को पिंजरे से उड़,
सैय्याद के डर से दूर जाना होगा!' 
(February 26, 2017 at 3.29 A.M.)
इक उम्र बीत गई तुझ से मिलने की कोशिश में,
इस उम्मीद में जाने किस-किस से मिल रही हूं मैं।
(September 2, 2019 at 1.49 P. M.)

गुरु का घर

रात की रोशनी में नहाया गुरु का घर,
अपनी ओर आकर्षित करता, अपनी ओर खींचता,
यकीं है खुशी, शांति, सकूं देगा,
बस वो पहला कदम बढ़ाना है
बस एक कदम.....
(September 25, 2019 at 12.02 A. M.)

मनोरथ --- manorath----




मन का रथ,
उड़ान भरता,
आसमान में विचरता,
आज़ाद,
उस पंछी की तरह जो दुनिया के रीति-रिवाजों से,
बंधा नहीं,
जो समाज के बंधनों में जकड़ा नहीं!!
मनोरथ---
मेरे मन का रथ,
अपने ही वेग से,
चलता, उड़ता, स्वछंद!!!!

man ka rath
udaan bharta
aasman mein vicharta
aazaad
us panchi ki tarah jo duniya ke reete-rivazon se
bandha nahin
jo samaj ke bandhanon mein jakda nahin
manorath---
mere man ka rath
apne hi veg se
chalta, udta, swachand

(October 9, 2011 at 12.12 P. M.

बात बने

काफ़ी नहीं हाथ पकड़ कर रखना।
ज़िन्दगी भर हाथ थाम चलो, तो बात बने।।
दूरियां तो हैं यकीनन।
मुलाकातों का सिलसिला जारी रहे, तो बात बने।।
रंजिशों का‌ दौर जारी रहे तो रहे।
मुहब्बत के जाम छलकते रहें, तो बात बने।।
चंद लम्हों की है ज़िन्दगी।
आशनाई यूं ही बनी रहे, तो बात बने।।
तेरे संग इक लम्हा बिताने की हसरत।
उस लम्हे की ताब सहने की हिम्मत हो, तो बात बने।।
वक़्त है कि थमता नहीं।
जुदाई का ये आलम थमे, तो बात बने।।
राहें तो बहुत हैं हर ओर।
तेरे दर तक जो राह ले जाए, तो बात बने।।

(November 19, 2019 at 12.50 P. M.)

कोई क्षमा-याचना नहीं........


अँधेरा मेरे लिए अजनबी नहीं
छुप जाओ, वे कहते हैं
हम तुम्हारे टूटे हुए हिस्से नहीं देखना चाहते
मेरे दाग़ मुझे शर्मिंदा करते हैं
भाग जाओ, वे कहते हैं
जैसी तुम हो, तुम्हें कोई प्यार नहीं करेगा
सबसे तीखे शब्द जब मुझे काट डालना चाहते हैं
मैं उन्हें एक सैलाब में डूबा देना चाहती हूँ
मैंने चोट खाई है, मैं बहादुर हूँ
मैं वही हूँ जैसी मुझे होना चाहिए,
ये मैं हूँ
ध्यान दो कि मैं आ रही हूँ
ढोल-नगाड़े की आवाज़ पर
मैं बढ़ती आ रही हूँ
मुझे डर नहीं लगता कि कोई मुझे देखे
अपने होने के लिए
मैं कोई क्षमा-याचना नहीं करना चाहती
ये मैं हूँ
गोलियों की बौछार
एक बार फिर
मुझे छलनी करने को तैयार है
चलाओ, जितनी गोलियां चलानी हैं
आज मैं किसी शर्मिंदगी को
अपने अंदर घर नहीं करने दूँगी
सब बाँध तोड़
आज मैं तीव्रता से निकल पड़ी हूँ
सूर्य को पाने के लिए (मैं एक योद्धा हूँ)
हाँ, मैं यही हूँ, मैं यही हूँ
उन्हें मैं खुद को तोड़ने नहीं दूँगी
न ही वो मुझे मिट्टी में मिला पाएँगे
मैं जानती हूँ, मेरी भी एक जगह है
क्योंकि मैं उत्तम हूँ
मैं जानती हूँ
कि तुम्हारे प्यार पर मेरा हक़ है
क्योंकि ऐसा कुछ नहीं
जिसके मैं योग्य नहीं
देखो मैं आ रही हूँ
मुझे डर नहीं लगता कि कोई मुझे देखे
अपने होने के लिए
मैं कोई क्षमा-याचना नहीं करना चाहती
ये मैं हूँ
(November 26, 2019 at 11.50 P. M.)

दबे पाँव


संकरी गलियों से गुजरता
उसके आँगन तक आ गया
आँगन से बारादरी
बारादरी से ख्वाबगाह तक पहुँच गया
जाने क्या था, कैसा था
कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था
जहाँ से गुजरा,
रौशनी की हर किरण को खा गया
पँखे की हवा से
घर के इक-इक कोने में फैल गया
दम घुटने लगा
साँस रुकने लगी
पर वो था कि थम ही नहीं रहा था
मानो सब अपने साथ ले कर जाएगा
सबकी जान उसकी मुट्ठी में थी
एक छड़ी घुमाएगा
और सब ख़त्म
बहुत कोशिश की
उसके चुंगुल से निकलने की
लेकिन वो तो ठान कर आया था
कि सब का अंत कर देगा
इतने में इक नन्ही परी
की खिलखिलाहट से
पूरा घर गूँज उठा
हर तरफ़ रौशनी ही रौशनी
डर गया वो
दुम दबा कर भागा
जाने क्या लेने आया था
लेकिन उस परी की
हँसी की ताब न सह पाया
जानता था कि उसके होते
कुछ न कर पाएगा वो
चला गया ख़ाली हाथ
अपना सा मुँह ले कर
दोबारा उस आँगन की ओर
कभी न देखने के लिए
(November 28, 2019 at 1.38 A. M.)

अवर्णनीय क्षण-----


एक अवर्णनीय क्षण में
पूरी दुनिया ख़त्म हो जाती है
एक अवर्णनीय क्षण में
तुम्हें पता लग जाएगा कि क्या कहना है
एक अवर्णनीय क्षण में
तुम्हारा मन सच बोल देगा
क्योंकि उस अवर्णनीय,
जादुई, गूढ़, अनंत, अविश्वसनीय क्षण में
ज़रुरत होगी तुम्हें केवल इन शब्दों की,
'मैं तुमसे प्रेम करती हूँ'
एक अवर्णनीय क्षण में
यहाँ न समय है न कोई अंतराल
एक अवर्णनीय क्षण में
सब समझ आ जाता है
एक अवर्णनीय क्षण में
तुम्हारे सारे सपने सच हो जाएंगे
क्योंकि उस एक अवर्णनीय क्षण में.....
(December 23, 2019 at 4.27 P. M.)

अभागी माएँ


रियालटी शोज़ का चलन सा चल पड़ा है
जिस भी चैनल पर देखो
रियालटी शोज़ की भरमार है
खुलम-खुला दर्शकों की भावनाओं संग खेला जा रहा है
दर्शक हैं कि बिना सोचे-समझे
उन बनाई हुई कृत्रिम भावनाओं में बहते जा रहे हैं
रिश्तों की तो जैसे नुमाईश लगी है
कभी दादी-दादा का दिन है
तो कभी नानी-नाना का
कभी बहन-भाई को एपिसोड समर्पित है
तो कभी माता-पिता को
दोस्ती को भी पीछे नहीं छोड़ा
हर रिश्ता बिकाऊ है
हर रिश्ते के नाम पर
चैनल की रेटिंग बढ़ाई जा रही है
सबसे संवेदनशील रिश्ता-- माँ का
उसे भी कहाँ छोड़ा
सबसे अधिक रुलाया जाता है माँ के एपिसोड में
कोई प्रतियोगी नहीं
जिसे माँ से प्यार न हो
या जिसकी माँ ने उसे उस मंच तक पहुँचाने में
अनगिनत बलिदान न दिए हों
माँ केवल माँ, कितनी अच्छी माँ
हो भी सकता है
परन्तु, क्या सच में ऐसा है?
क्या ऐसी अभागी माएँ नहीं
जिन्होंने सब किया होगा
अपने बच्चों के लिए?
बलिदान भी दिए होंगे,
उनकी ख़ातिर झूठ भी बोले होंगे?
पर सब व्यर्थ
क्योंकि उनके बच्चों को
माँ का किया कुछ दिखाई नहीं देता
विवेक काम नहीं करता शायद उनका
वरगलाना आसान होता है शायद उनको
या उनकी अपनी सोच, नहीं देख पाती
सब साफ़
इक पर्त जम जाती है
अविश्वास की, आखों पर
कोई अपमान कर दे
या कोई तिरस्कार
नहीं उठती आवाज़ ऐसे बच्चों की
अपनी माँ की अस्मिता बचाने के लिए
उन्हें दिखाई देती हैं
केवल माँ की, अपने दिमाग में उपजी, गलतियाँ
इन व्यथित माँओं की तस्वीर
क्यों नहीं दिखाते ये रियालटी शोज़?
कैसा प्रश्न है?
कभी नहीं दिखाएँगे
ऐसे कड़वे सच को
क्योंकि सच न तो सब देख पाते हैं
न ही उसे समझ पाते हैं
संसार भरा है
ऐसी अभागी माँओं से
कोई बच्चा नहीं आता
उनके आँसूं पोछने
पर वो तो माँ है
वो तो तब भी दुआ करती है
अपनी बच्चों की खुशी के लिए,
उनकी सलामती के लिए,
उनके स्वास्थ्य के लिए,
बरकत के लिए,
क्योंकि वो तो माँ है
(December 31, 2019 at 1.30 A. M.)

औपचारिकताएँ


मात्र औपचारिकताएँ ही रह गयी हैं अब रिश्तों में!
ढोये जा रहे हैं ऐसे रिश्ते,
जिन में कोई प्रेम,
कोई अपनापन नहीं!
रिस नहीं रहे,
न कोई गंध है!
पर खुश्बू नहीं,
न कोई आत्मीयता है!
कभी समाज के लिए,
कभी बच्चों के लिए,
रेल की दो पटड़ियाँ,
जो साथ हैं,
पर कभी मिल नहीं पाएँगी!
अपने लिए तो सोचा ही नहीं,
अपने लिए तो जिया ही नहीं!
बस औपचारिकता भरा रिश्ता ढोया!
कब पचास के पार हो गया,
पता ही नहीं चला!
कब ज़िन्दगी पास से गुज़र गयी,
एहसास ही नहीं हुआ!
कुछ लम्हे छू गए ज़िन्दगी के,
उनका एहसास आज भी मन को हर्षित करता है!
अब खुद के साथ वक़्त बिताना भाता है,
औपचारिकताओं से परे,
अपने में अपनापन है,
बस अपने लिए! 
(January 3, 2017 at 1.15 A.M.)

Some of the best things in life happen because of a MISTAKE...

(January 5, 2011 at 11.38 P. M.)
कुछ न होने से,
ज़रा सा,
तेरे होने से।।

(January 13, 2020 at 5.33 P. M.)
कुछ खट्टा, कुछ मीठा है मन; अच्छे-बुरे की पहचान है मन..हम सब का पैमाना-ऐ-आज़माइश है मन!!
kuchch khatta, kuchch meetha hai mann; achche-bure ki pehchaan hai mann..hum sab ka paimaana-ae-aazmaaish hai mann!!
(January 18, 2012 at 1.00 A. M.)
uski yaad mein raat kat-ti nahin, aankh ik pal ko jhapakti nahin. wo khoya hai apne hi saroor mein, hamari yaad mein uski aankh se ik boond bhi chalakti nahin.....

(January 21, 2012 at 12.11 A. M.)

स्टील का पलंग


बदल रहा है सब,
पलक झपकते ही,
बिस्तर अब पलंग हो गया है
स्टील का एक ढाँचा
ठंडा, सख़्त, चमकीला,
मेरी भावनाओं से मेल खाता
गर्द है चारों ओर
चिलचिलाती हवा जैसी,
कोयले और तूफ़ान सी काली,
मेरे पापों सी सियाह,
बहुत देर तक सहती रही,
एक औरत बहुत बर्दाश्त कर सकती है,
दो को बर्बाद कर सकता है कोई तीसरा
केवल एक दाँव चाहिए,
सब नष्ट करने के लिए
तुम थे वहाँ
मुझे घुटने के बल गिड़गिड़ाते देखते रहे,
किस तरह का आदमी मुझे से पूछेगा
कि वो कोई सौदा कर ले?
भविष्ये में प्रेमी जब ये पंक्तियाँ पढेंगे
उनके मन में
स्टील और तूफ़ान की आवाज़ गूँजेगी
बहुत देर तक सहती रही,
एक औरत बहुत बर्दाश्त कर सकती है,
दो को बर्बाद कर सकता है कोई तीसरा
केवल एक दाँव चाहिए,
सब नष्ट करने के लिए
राख़ तेज़ी से बिखर रही है
लाल सुर्ख़ ख़ून में बदल रही है
असामान्य है महसूस करना
कितनी स्पष्ट और साफ़ दिखती हैं
वो चीज़ें जो प्रेम से उपजती हैं

(February 6, 2019 at 10.50 P. M.)

लाल भूगर्भ


हवा ठंडी से सर्द से बर्फीली हो
कंटीली होती चली गयी
तुम्हारी आवाज़ मेरे कानों में गूँजती कह रही थी
कोई ख़तरा नहीं है
विश्वास करो, पूर्ण विश्वास
मैं लगभग आश्वस्त हो गयी थी
अपने स्वाभिमान को ताक पर रखने के लिए
लगभग आश्वस्त
अपने विवेक को अलग रखने को
लेकिन एक बार फिर से वही भावना घेर रही है
फिर से वही दुःखद दुःस्वप्न
कि कुछ गलत है
स्वागत है लाल भूगर्भ में
सही नहीं लग रहा है
पूरी ताकत से हूँ बचाने की कोशिश में
छोड़ना चाहती हूँ सारा नियंत्रण
तुम अभिनय कर सकते हो
कि तुम्हारा हृदय सोने का है
पर तुम्हें पता है तुमने क्या किया है
तुम कितने भी ग़ुलाब तोड़ कर लाओ
पर तुम्हें पता है तुमने क्या किया है 
(February 7, 2019 at 1.20 A. M.)

तुम से जो हो कर आ रही हैं
हवाओं में अजब सी खुशबू है

February 12, 2020 at 1.41 P. M.

एक मोड़, दूसरा, फिर तीसरा
जिंदगी इन्हीं अनन्त मोड़ो में उलझती
न जाने कब अन्तिम पड़ाव की ओर चल पड़ी।
February 13, 2019

That's what TIME is all about--it continues to move and with it we too move--we grow,we learn,we become maturer--and when there is a loved one to share that time with,it becomes more poignant....
March 23, 2010

For a WOMAN of SUBSTANCE--"If she's amazing, she won't be easy. If she's easy, she won't be amazing. If she's worth it, you won't give up. If you give up, you aren't worth it".

भावुक मृत्यु


औरत की दुर्दशा का निर्णायक कारण,
छोड़ दिया जाता है उन मर्दों पर,
जिन्हें न औरत के मन का पता है,
और न ही उनकी आत्मा का।
वो नियंत्रण में रखता है,
वो नियंत्रित रहती है।
वो हमारे शरीरों पर काबू पाते हैं।
हमारे भाग्य का फैसला करते हैं।
घृणा से ग्रसित,
वो हमारे दिमाग को भी काबू में रखते हैं।
औरतों के लिए उनकी नफ़रत,
हमारे हकों की मांग के लिए उनका द्वेष।
वो नियंत्रित रखना चाहते हैं।
वो वश में रखना चाहते हैं।
इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता,
और प्रायः इसे ख़ारिज कर दिया जाता है।
इस लिए यह हम पर निर्भर है,
कि हम बताएँ कि ऐसा होता है।
बहुत देर तक हमने इसे अनदेखा किया है।
अपने अंदर दबा कर रखा है।
परन्तु जो क्षति इस से होती है,
उसे छिपाना आसान नहीं होता।
औरतें इस से हर दिन समझौता करती हैं।
इस से मिला दर्द जाता नहीं।
हर साँस के साथ यह और बढ़ता जाता है,
ताक़तवर होता है।
इसका अंत है,
भावुक मृत्यु।
हम इसके साथ जीना सीख लेते हैं।
हम ढोंग करना चुन लेते हैं।
अपने अज्ञान में हम आशा करते हैं,
कि पीड़ा ख़त्म हो जाएगी।
यदि हम गुस्से को नकारते हैं,
पीड़ा को अस्वीकार करते हैं,
तो यह घृणा जो हम महसूस करते हैं,
हमें पागलपन कि ओर अग्रसर होने को
बाध्य कर देगी।
फिर एक दिन आएगा कि हम देखेंगे,
कि हम वो नहीं,
जो हम दिखाने का ढोंग करते हैं।
हम निष्क्रिय नहीं रहेंगे,
न ही अपनी पीड़ा को नकारेंगे।
न ही दूसरे के लाभ के लिए
गाली सुनेगें।
गीत गाए जा रहे हैं
और यह एक शुरुआत है।
लेकिन यह सब
हमारे हृदय के विषाद को ख़त्म नहीं कर सकता।
शब्द लिखे जाते हैं,
कवितायेँ लिखी जाती हैं।
हमारे अंदर की पीड़ा,
समय के साथ काम नहीं होती।
औरतें इस से हर दिन समझौता करती हैं।
इस से मिला दर्द जाता नहीं।
हर साँस के साथ यह और बढ़ता जाता है,
ताक़तवर होता है।
इसका अंत है,
भावुक मृत्यु।
आदमी नियम बनाते हैं।
औरतें उनका पालन करती हैं।
हम असहाय महसूस करते हैं।
हम भागते हैं,
हम छिपते हैं।
प्रतिदिन केवल हमारे हक़ ही नहीं चुराए जा रहे।
पर, हर दिन, हम में से
हर एक का,
कुछ न कुछ ग़ुम हो रहा है।
फिर एक दिन आएगा कि हम देखेंगे,
कि हम वो नहीं,
जो हम दिखाने का ढोंग करते हैं।
हम निष्क्रिय नहीं रहेंगे,
न ही अपनी पीड़ा को नकारेंगे।
न ही दूसरे के लाभ के लिए
गाली सुनेगें।
April 16, 2019
tumhaari pehchaan tum khud ho/
khud ko dhoondoge to apni pehchaan bhi mil jaayegi.
तुम्हारी पहचान तुम ख़ुद हो।
ख़ुद को ढूंढोगे तो अपनी पहचान भी मिल जाएगी।।
April 20, 2011