CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Monday, June 10, 2013

नासमझ प्यार की समझ....../ समझ भरे प्यार की नासमझी...



तुम्हारे आने पर,
मैने देखा,
हँसता द्वार, चहकती ड्योढ़ी!
फिर तुम क्यों,
चुप से खड़े रहे?

बादल बन आये तुम,
जीवन पर छाये तुम,
बूँदों से अपनी,
शीतल करते तन-मन!
फिर तुम क्यों,
चुप से खड़े रहे?

याद हो आया,
तुम्हारा वो ख़त,
जिस में वो रात थी,
जुदाई के कारण,
दूर बिताई थी जो हमने!
उस ख़त को याद कर,
क्यों चुप से खड़े रहे तुम?

ख़त में थी,
वो सब बातें,
करवटें बदलते,
कहना चाहते थे,
जो तुम मुझे!
बिस्तर की उन सलवटों को देख,
क्यों चुप से खड़े रहे तुम?

कितनी खूबसूरती से,
हाले-दिल बयाँ किया था तुमने!
अपने दिल के सच को जान,
क्यों चुप से खड़े रहे तुम?

तुम्हारे ख़त में
सब कुछ होता था!
दर्द, प्यार, एहसास,
विरह की वेदना, साथ होने का एहसास,
दूरियों का हिसाब-किताब!
सारा हिसाब-किताब जान,
क्यों चुप से खड़े रहे तुम?

ना जाने इस दिल को क्या सूझी
तुम्हारे ख़त को फिर पढ़ने का,
मन हो आया!
हाथ तकिये के नीचे गया तो,
आँखों की नमी फैली हुई मिली!
भीनी-भीनी, मीठी सी मुस्कराहट में घुली,
आँखों की नमी को देख,
क्यों चुप से खड़े रहे तुम?

(प्यार की समझ तो हम दोनों को थी----- और नासमझी से प्यार कहाँ किया था हमने-----)
((डायरी का वो पन्ना आज भी मूँह बाये देखता है मेरी ओर--- समझ भरे प्यार की नासमझी लिख रखी जिस पर हमने---))

June 11, 2013 at 2.08 A.M.

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