CLOSE TO ME

My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................

Wednesday, October 6, 2010

ईशवर बिक रहा है--बोली लगाओ....

मेरा रब तो मेरे अन्दर था
जिसे मैं पूजता था!
पता नहीं कब बाहर आ
सौदा बन गया?
बाज़ार में टके भाव बिकने लगा!
इंसानों की मंडी में
बोली लगने लगी उसकी!
जितना बड़ा रुतबा
उतनी बड़ी बोली!!
अब मेरा रब भी सोचता है:
क्यों न इस दुनिया को छोड़
वापिस बैकुंठ आ जाऊं?
शायद इंसान की खरीदो-फरोख्त से
निकल अपना अस्तित्व वापिस पा पाऊं!!!
October 6, 2010 at 5.42 P.M.

ईशवर बिक रहा है--बोली लगाओ....

मेरा रब तो मेरे अन्दर था
जिसे मैं पूजता था!
पता नहीं कब बाहर आ
सौदा बन गया?
बाज़ार में टके भाव बिकने लगा!
इंसानों की मंडी में
बोली लगने लगी उसकी!
जितना बड़ा रुतबा
उतनी बड़ी बोली!!
अब मेरा रब भी सोचता है:
क्यों न इस दुनिया को छोड़
वापिस बैकुंठ आ जाऊं?
शायद इंसान की खरीदो-फरोख्त से
निकल अपना अस्तित्व वापिस पा पाऊं!!!
October 6, 2010 at 5.42 P.M.

Monday, October 4, 2010

अंधे-बहरों का शहर.....

सबको दिल की बात बताना कहाँ मुमकिन होता है
ये फ़साना सब को बयाँ नहीं किया जाता
अंधे-बहरों के शहर में
सब दिल की बात कहाँ समझते हैं
सुन कतरा निकल जाते हैं
किसको दिल की गहराईयों का इल्म है
परतों में क्या छुपा है
कौन जानता है
क्या बताएँ दिल की बात को
कोई हम-ज़ुबां, हम-नफ्ज़, हम-लफ्ज़ तो मिले!!!!
October 4, 2010 at 8.52 A.M.

Sunday, October 3, 2010

यह सुन्दर वाटिका भी आज निशब्द है....

लंबी चिमनी
सियाह कालिख से लथ-पथ
अपनी नाभि में दाँत गढ़ाए
काला धुंआ उगलती
जलती
धरती को जलाती,
नब्ज़ मंद होती,
सांस लेने को तरसती
चाँद भी धुंधला पड़ गया है
सितारे साथ छोड़ गए हैं
हवा का चेहरा मुरझाया सा है
शीशे में अपने अक्स को देखने को कतराता
बादल से खून के आँसूं क्यों बह रहे हैं?
सिक्कों की खनक बारम्बार
कोयल के गीत को दबा रही है
पक्षियों की चहचहाहट मौन है
पोधों के चेहरों पर हँसी नहीं है
यह सुन्दर वाटिका भी आज निशब्द है....
October 3, 2010 at 10.50 P.M.
translated an English poem into Hindi

बे-रंग है जुबां .........

मन में छिपा डर है
कहीं कोई रुसवा न हो जाए
नाप-टोल कर हर बात कहता हूँ
कहीं किसी का दिल न टूट जाए
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे के फेर में
ऐसा फसा हूँ
कि अपनी स्वाभाविकता
ही भूल चूका हूँ
रंग तो जैसे सब फीके पड़ चुके हैं
बे-रंग है जीवन
और उस से बे-रंग है जुबां
शायरी किसी कोने में पड़ी
सिसकियाँ ले रही है
अब तो बस जुबां हिला
बात करता हूँ
वरना शब्द तो जाने कहाँ खो गए हैं!!!!!
October3, 2010 at 9.41 A.M.

Saturday, October 2, 2010

लाल ग़र होता.......

'लाल' ग़र आज होता
हमारे देश में
राजनीतज्ञों का यूँ अकाल न होता
हम भी सर उठा कह पाते
'हमने चुना है इस नेता को
बागडोर दी है देश की इसके हाथ में
यकीं है हमें इसकी इमानदारी पर
इसी लिए है ये सबसे बड़ी पदवी पर
इस जैसा और नहीं
यही है सब से सही
तभी है ये देश का नेता
हमारे भारत का बेटा
ये देश को आगे ले जाएगा
चाहे इसका सब लुट जाएगा'!
है 'लाल' तो देश है
'लाल' नहीं तो बिक रहा है देश
अरे जाओ कोई तो 'लाल' लाओ
और देश को इन हरामखोरों से बचाओ!!!!
October 2, 2010 at 10.52 P.M.

Friday, October 1, 2010

जर्जर हो चुकी धरती......

चारों और धुआं ही धुआं है
कुछ सुझाई नहीं देता
हाथ को नहीं पहचानता
एक काट रहा है
एक चीर कर साफ़ निकाल जाता है
काला गहरा धुंआ
परिंदों की चीत्कार
नदियों की पुकार
कोई सुन रहा है क्या?
अरे, देखो
वो एक पेड़
पड़ा है धरती पर
अब तो केवल ठूंठ ही बचा है
जड़ें तो कब की सूख चुकीं
धरती जर्जर हो चुकी
आसमान सफ़ेद हो चला
इंसान अभी भी सोया है
कुभ्करण की नींद
उठेगा तो कुछ नहीं बचेगा
शायद अभी जाग जाए
शायद धुंआ छट जाए!!!!
October 1, 2010 at 4.04 P.M.