
PART II OF ----तुम---बस कह देते-----मैं यकीन कर लेता-----
शब्दों की छुअन तो महसूस की तुमने भीतर तक ..
नर्म से, अपने आगोश में लेते, सहलाते कभी!
अपने पास बिठा, प्यार करते कभी!
और कभी खुरदरे, काँटों भरे,
लहू-लुहान करते, चीरते!
शब्दों को छोड़ चुप्पी आई जब बीच में,
तुम उसे भी समझ न पाए!
खामोशियों में छिपी तन्हाइयाँ
क्यों देख न पाए तुम?
(अपने थे तुम मेरे, सबसे प्रिये, कैसे सोचा तुमने कि शब्द ही सब कह पायंगे........)
मौन बहुत मुखर ...और शब्द हुए मौन.......