दुःख कहाँ छिपता है छिपाने से
आँखों से अश्कों में बह जाता है
मुँह से दर्द भरी आह बन कर निकलता है
डबडबाती आँखों से
लरजते होठों से
उसकी ओर देखती हूँ
कि शायद कहीं पनाह मिल जाए
पर वो तो निर्मोही है
हरजाई है
वो कहाँ देखता है मेरी इस हालत को
वो तो बस खड़ा है मेरे सामने
मेरे हर दुःख को नज़रंदाज़ कर
मेरे दर्द को और बढाने को!!!(24.01.2010)
CLOSE TO ME
My friends,
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................
It feels good to have my own blog.....there are things which are close to my heart and things which have affected me one way or the other.....my thoughts,my desires,my aspirations,my fears my gods and my demons---you will find all of them here....I invite you to go through them and get a glimpse of my innermost feelings....................
Monday, January 25, 2010
Friday, January 22, 2010
वासना
औरत के जिस्म को नोचता-खसोटता
अपनी वहशी प्यास बुझाता
आदमी आगे निकल जाता है
एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखता
की वो पीछे कौन सा खंडहर छोड़ आया है?
क्या उसे एहसास नहीं होता की औरत की अस्मत की कीमत नहीं होती?
क्या उसे नहीं पता की औरत पाक होती है?
उस औरत से वो अपनी वासना भुजाता है
जो जननी है, माँ
अपने इस वहेशीपन से कब निकलेगा आदमी?
कब?
क्या सब ख़त्म होने के बाद?
क्या नहीं जानता की औरत उसकी वासना की अधिकारी नहीं?
क्या नहीं जानता की औरत को प्यार दे तो वो उसके लिए अपनी जाँ भी लूटा दे?
तो क्या ज़रूरी है वासना यह नंगा नाच?(22.01.2010)
अपनी वहशी प्यास बुझाता
आदमी आगे निकल जाता है
एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखता
की वो पीछे कौन सा खंडहर छोड़ आया है?
क्या उसे एहसास नहीं होता की औरत की अस्मत की कीमत नहीं होती?
क्या उसे नहीं पता की औरत पाक होती है?
उस औरत से वो अपनी वासना भुजाता है
जो जननी है, माँ
अपने इस वहेशीपन से कब निकलेगा आदमी?
कब?
क्या सब ख़त्म होने के बाद?
क्या नहीं जानता की औरत उसकी वासना की अधिकारी नहीं?
क्या नहीं जानता की औरत को प्यार दे तो वो उसके लिए अपनी जाँ भी लूटा दे?
तो क्या ज़रूरी है वासना यह नंगा नाच?(22.01.2010)
Wednesday, January 20, 2010
यादें
बीते दिनों की याद कहाँ जाती है
वो तो दिन-रात साथ रह यों ही तडपाती है
यादों के साये काले नाग की तरह डसते हैं
कहाँ से लाऊँ वो नेवला
जो इन नागों को खा जाए
क्या हो की इन यादों के साये से निकल पाऊँ
तपती रेत पर चलते
कहीं तो सुकूँ पाऊँ
कहीं तो मिलेगा यादों के इस रेगिस्तान में कोई
मरुद्यान
जो मेरी तपती रूह को शाँत करे
और अपने शीतल जल से
यादों की इस आग को ठण्डा कर दे!!!!!!!(20.01.2010)
वो तो दिन-रात साथ रह यों ही तडपाती है
यादों के साये काले नाग की तरह डसते हैं
कहाँ से लाऊँ वो नेवला
जो इन नागों को खा जाए
क्या हो की इन यादों के साये से निकल पाऊँ
तपती रेत पर चलते
कहीं तो सुकूँ पाऊँ
कहीं तो मिलेगा यादों के इस रेगिस्तान में कोई
मरुद्यान
जो मेरी तपती रूह को शाँत करे
और अपने शीतल जल से
यादों की इस आग को ठण्डा कर दे!!!!!!!(20.01.2010)
Sunday, January 17, 2010
कृति
रिश्ते तो प्यार के होते हैं
द्वेष और नफरत तो इन रिश्तों को तोड़ते हैं
जो प्यार न करे वो कैसे इन्सां
शैतानी फितरत तो केवल मौत देती है
नफरत के इस भंवर से निकल कर
प्यार का पैग़ाम जो फैलाए
वही उस ईशवर की सच्ची कृति!!!(17.01.2010)
द्वेष और नफरत तो इन रिश्तों को तोड़ते हैं
जो प्यार न करे वो कैसे इन्सां
शैतानी फितरत तो केवल मौत देती है
नफरत के इस भंवर से निकल कर
प्यार का पैग़ाम जो फैलाए
वही उस ईशवर की सच्ची कृति!!!(17.01.2010)
Saturday, January 16, 2010
नामो-निशाँ
क्यों पैदा होते हैं?
क्यों मर जाते हैं?
बिना कुछ किये, बिना कुछ कमाए
ज़िन्दगी के धुएँ में खो जाते हैं!
की इसी लिए पैदा होते हैं
कि इक दिन मिट्टी में मिल जाएँ,
ख़ाक हो जाएँ
और कहीं भी उनका कोई नामो-निशाँ न रहे?
फिर क्यों पैदा होते हैं
क्या सिर्फ मरने के लिए?(25.01.1998)
क्यों मर जाते हैं?
बिना कुछ किये, बिना कुछ कमाए
ज़िन्दगी के धुएँ में खो जाते हैं!
की इसी लिए पैदा होते हैं
कि इक दिन मिट्टी में मिल जाएँ,
ख़ाक हो जाएँ
और कहीं भी उनका कोई नामो-निशाँ न रहे?
फिर क्यों पैदा होते हैं
क्या सिर्फ मरने के लिए?(25.01.1998)
Womb
Is my womb not my own?
From the time I am born
to the time I die,
I am being pushed around.
I cannot choose what I want to do.
I am merely treated as an object all the time.
Even when I become pregnant
with a girl child,
I am forced to abort it.
But, I am not asked to abort the boy foetus.
Why should my womb
listen to the dictates of the patriarchal society?
It is my womb, my life,
and the life I bring into this world
will only be mine.
It will be a human life
not a boy or a girl.(23.02.2006)
From the time I am born
to the time I die,
I am being pushed around.
I cannot choose what I want to do.
I am merely treated as an object all the time.
Even when I become pregnant
with a girl child,
I am forced to abort it.
But, I am not asked to abort the boy foetus.
Why should my womb
listen to the dictates of the patriarchal society?
It is my womb, my life,
and the life I bring into this world
will only be mine.
It will be a human life
not a boy or a girl.(23.02.2006)
Monday, January 11, 2010
सामना
ज़िन्दगी जीने के लिए है
बिना ख्वाहिशों के जिए तो क्या जिए
डर गए गर तूफानों से
तो समंदर में कश्ती मत डालो
जो किया उन तूफानों का सामना
तो मरने से डरना क्या!!!(11.01.2010)
बिना ख्वाहिशों के जिए तो क्या जिए
डर गए गर तूफानों से
तो समंदर में कश्ती मत डालो
जो किया उन तूफानों का सामना
तो मरने से डरना क्या!!!(11.01.2010)
सज़ा
मोहब्बत सज़ा है
यह मत समझिये
मोहब्बत तो वो एहसास है
जो रोम-रोम महका देता है
मोहब्बत जिसने नहीं की
उस से पूछो की उसने क्या खोया
फिर एहसास होगा की तुमने क्या पाया
मोहब्बत में सब कुछ लुटा के!!!(11.01.2010)
यह मत समझिये
मोहब्बत तो वो एहसास है
जो रोम-रोम महका देता है
मोहब्बत जिसने नहीं की
उस से पूछो की उसने क्या खोया
फिर एहसास होगा की तुमने क्या पाया
मोहब्बत में सब कुछ लुटा के!!!(11.01.2010)
गम
मेरे गम तो मेरे साथी हैं
साये की तरह मेरे साथ रहते हैं
मैं इनकी क्या नुमाइश करूँगी
यह तो आँखों से छलक कर
खुद ही अपनी कहानी बयाँ कर देते हैं!!!(11.01.2010)
साये की तरह मेरे साथ रहते हैं
मैं इनकी क्या नुमाइश करूँगी
यह तो आँखों से छलक कर
खुद ही अपनी कहानी बयाँ कर देते हैं!!!(11.01.2010)
चमन
उनके आ जाने से आ जाती है बहार
ऐसे की सब खिल उठता है
मैं फूलों को क्या देखूँ
मेरे पास तो चमन है!!!(11.01.2010)
ऐसे की सब खिल उठता है
मैं फूलों को क्या देखूँ
मेरे पास तो चमन है!!!(11.01.2010)
कहानी
प्यार में मैं कहानी बन जाऊँ
ऐसा तो न चाहा था
उसकी आँख से गिरे मोती की तरह
उसके गाल से लिपट जाऊँ
ऐसा खुदा से माँगा था
यह तो थी मेरी तकदीर
की उसकी आँख के आँसू ही नम हो गए
न तो उसके गाल से ही लिपट सकी
और न ही प्यार में कहानी बन पायी!!!(11.01.2010)
ऐसा तो न चाहा था
उसकी आँख से गिरे मोती की तरह
उसके गाल से लिपट जाऊँ
ऐसा खुदा से माँगा था
यह तो थी मेरी तकदीर
की उसकी आँख के आँसू ही नम हो गए
न तो उसके गाल से ही लिपट सकी
और न ही प्यार में कहानी बन पायी!!!(11.01.2010)
नैन
नैन दिल की बात कहते हैं
यह सच है
पर दिल की हर बात नैनों से बयाँ नहीं होती
दिल रोता है नैन कुछ और कहते हैं
दिल के दर्द को
कभी नैन भी छिपा देते हैं!!(11.01.2010)
यह सच है
पर दिल की हर बात नैनों से बयाँ नहीं होती
दिल रोता है नैन कुछ और कहते हैं
दिल के दर्द को
कभी नैन भी छिपा देते हैं!!(11.01.2010)
मिसाल
इश्क में खुद को मिटा देना
यही इश्क का दस्तूर है
इश्क करिए तो ऐसे करिए
की इश्क की मिसाल बन कर रहिए!!!(11.01.2010)
यही इश्क का दस्तूर है
इश्क करिए तो ऐसे करिए
की इश्क की मिसाल बन कर रहिए!!!(11.01.2010)
ਪ੍ਰੀਤ(preet)
ਜੇ ਪ੍ਰੀਤ ਨਾ ਕੀਤੀ
ਤੇ ਕੀ ਕੀਤਾ
ਜੇ ਦਿਲ ਨਾ ਲਗਾਯਾ
ਤੇ ਕੀ ਪਾਯਾ
ਪ੍ਰੀਤ ਕਰਕੇ ਜੋ ਪਾਯਾ
ਖੁਦਾ ਦਾ ਨੂਰ ਪਾਯਾ!!!(this is in Punjabi)
जो प्रीत न की
तो क्या किया
जो दिल न लगाया
तो क्या पाया
प्रीत करके जो पाया
उस में खुदा का नूर पाया!!(11.01.2010)
ਤੇ ਕੀ ਕੀਤਾ
ਜੇ ਦਿਲ ਨਾ ਲਗਾਯਾ
ਤੇ ਕੀ ਪਾਯਾ
ਪ੍ਰੀਤ ਕਰਕੇ ਜੋ ਪਾਯਾ
ਖੁਦਾ ਦਾ ਨੂਰ ਪਾਯਾ!!!(this is in Punjabi)
जो प्रीत न की
तो क्या किया
जो दिल न लगाया
तो क्या पाया
प्रीत करके जो पाया
उस में खुदा का नूर पाया!!(11.01.2010)
इंतज़ार
जो मज़ा इंतज़ार में है
वो मिलने में नहीं
इंतज़ार प्यार को और गहरा देता है
और प्यार का एहसास और मीठा हो जाता है!!(11.01.2010)
वो मिलने में नहीं
इंतज़ार प्यार को और गहरा देता है
और प्यार का एहसास और मीठा हो जाता है!!(11.01.2010)
ज़ख्म
सब अश्क दिखाए नहीं जाते
सब दर्द बयाँ नहीं करते
कुछ तो दिल में रहने दो
यूँ अपने ज़ख्म दिखाया नहीं करते!!!!(11.01.2010)
सब दर्द बयाँ नहीं करते
कुछ तो दिल में रहने दो
यूँ अपने ज़ख्म दिखाया नहीं करते!!!!(11.01.2010)
प्यार
प्यार में नफ़ा क्या नुक्सान क्या
प्यार किया तो यह सब सोचना क्या
प्यार है तो दर्द भी होगा
तो उस दर्द से मुँह मोड़ कर जीना क्या!!(11.01.2010)
प्यार किया तो यह सब सोचना क्या
प्यार है तो दर्द भी होगा
तो उस दर्द से मुँह मोड़ कर जीना क्या!!(11.01.2010)
उनका आना
उनके आने से हवा महक उठती है
चमन खिल उठता है
उनके चले जाने से ख़त्म हो जाती है होठों की हँसी
ऐसे जैसे कभी मुस्कुराये न हों!!!(11.01.2010)
चमन खिल उठता है
उनके चले जाने से ख़त्म हो जाती है होठों की हँसी
ऐसे जैसे कभी मुस्कुराये न हों!!!(11.01.2010)
महबूब
महबूब पास हो तो ज़िन्दगी खूबसूरत है
महबूब नहीं तो क्या जीना
महबूब के बिना ज़िन्दगी मौत है
ऐसा जीना भी क्या जीना
जिस में महबूब की मोहबत नहीं!!!!(11.01.2010)
महबूब नहीं तो क्या जीना
महबूब के बिना ज़िन्दगी मौत है
ऐसा जीना भी क्या जीना
जिस में महबूब की मोहबत नहीं!!!!(11.01.2010)
कलम
कलम बनी ही इसी लिए है की वह दिल के गम
कागज़ पर उतार सके--यदि कलम न होती तो
इन ग़मों को बाहर आने का जरिया कहाँ से मिलता!!!!(11.01.2010)
कागज़ पर उतार सके--यदि कलम न होती तो
इन ग़मों को बाहर आने का जरिया कहाँ से मिलता!!!!(11.01.2010)
हुस्न और इश्क
हुस्न को क्यों न गरूर हो खुद पर
जब इश्क उस पर फ़िदा है
खुदा ने हुस्न बनाया है
की इश्क उस पर मिट के फना हो जाए!!(11.01.2010)
जब इश्क उस पर फ़िदा है
खुदा ने हुस्न बनाया है
की इश्क उस पर मिट के फना हो जाए!!(11.01.2010)
अश्क
रोक लो इन अश्कों को
इन्हें यूँ ही मत बहने दो
दिल के बाज़ार में
इनकी कीमत बहुत है
इन्हें यूँ ही मत बहने दो!!!(11.01.2010)
इन्हें यूँ ही मत बहने दो
दिल के बाज़ार में
इनकी कीमत बहुत है
इन्हें यूँ ही मत बहने दो!!!(11.01.2010)
Sunday, January 10, 2010
भूख
भूख, जो हर इन्सान के अंदर होती है
किसी को तख्तो-ताज की भूख है
तो किसी को दौलत की
किसी को भगवान बनने की भूख है
तो किसी को शैतान बनने की
किसी को औरत के जिस्म की भूख है
तो किसी को उसे मिटाने की
हर व्यक्ति अपनी भूख से घिरा,
अधमरा, बेजान सा,
जिए जा रहा है
पता नहीं क्यों;
किसके लिए?
शायद अपनी भूख को शांत करने के लिए
बिना सोचे-समझे,
बेमकसद,
केवल जिंदा है
अपनी भूख को मिटाने के लिए!!!(17.06.2002)
किसी को तख्तो-ताज की भूख है
तो किसी को दौलत की
किसी को भगवान बनने की भूख है
तो किसी को शैतान बनने की
किसी को औरत के जिस्म की भूख है
तो किसी को उसे मिटाने की
हर व्यक्ति अपनी भूख से घिरा,
अधमरा, बेजान सा,
जिए जा रहा है
पता नहीं क्यों;
किसके लिए?
शायद अपनी भूख को शांत करने के लिए
बिना सोचे-समझे,
बेमकसद,
केवल जिंदा है
अपनी भूख को मिटाने के लिए!!!(17.06.2002)
जीवन और मृत्यु
जीवन और मृत्यु
तस्वीर के दो पहलू
जीवन मिला है
तो मौत भी आएगी
विधि का विधान है
ईशवर का वरदान है--
जीवन
तो मौत भी उसी की
दी हुई है
जीवन को स्वीकारते हुए
हमें मौत भी स्वीकारनी होगी
जीवन में कुछ भी निशचित नहीं
परतु मौत तो निशचित है
तो फिर मौत से कैसा भय
क्यों मौत का खौफ
मौत तो आनी है
और एक दिन अवश्य आएगी
तो क्यों न कुछ ऐसा कर जाएँ
की मरने के बाद भी न मरें
और जीवन से अधिक लोग याद करें
कुछ इस तरह
की हम हँसे और जग रोये !!!(26.03.2002)
तस्वीर के दो पहलू
जीवन मिला है
तो मौत भी आएगी
विधि का विधान है
ईशवर का वरदान है--
जीवन
तो मौत भी उसी की
दी हुई है
जीवन को स्वीकारते हुए
हमें मौत भी स्वीकारनी होगी
जीवन में कुछ भी निशचित नहीं
परतु मौत तो निशचित है
तो फिर मौत से कैसा भय
क्यों मौत का खौफ
मौत तो आनी है
और एक दिन अवश्य आएगी
तो क्यों न कुछ ऐसा कर जाएँ
की मरने के बाद भी न मरें
और जीवन से अधिक लोग याद करें
कुछ इस तरह
की हम हँसे और जग रोये !!!(26.03.2002)
Saturday, January 9, 2010
रिश्ते
कुछ रिश्तों का कोई नाम नहीं होता
ऐसे रिश्ते बन जाते हैं
कब कहाँ कैसे
कोई नहीं जानता
और फिर एक दिन
यही रिश्ते बहुत अहम् हो जाते हैं
उसके लिए
जो इन रिश्तों की अहमियत को समझता है
ऐसे रिश्ते जो बन जाते हैं
जाने कब कहाँ कैसे
पर बन जाते हैं ज़िन्दगी भर के लिए!!(01.04.2006)
ऐसे रिश्ते बन जाते हैं
कब कहाँ कैसे
कोई नहीं जानता
और फिर एक दिन
यही रिश्ते बहुत अहम् हो जाते हैं
उसके लिए
जो इन रिश्तों की अहमियत को समझता है
ऐसे रिश्ते जो बन जाते हैं
जाने कब कहाँ कैसे
पर बन जाते हैं ज़िन्दगी भर के लिए!!(01.04.2006)
बेबसी
और वो चला गया
उसने मुड़ कर नहीं देखा
और मैं उसे जाते हुए देखती रही
त्रिशंखू की तरह
अधर में लटकी
मैं सोचती रही
और उसे जाते हुए देखती रही!!(21.02.2007)
उसने मुड़ कर नहीं देखा
और मैं उसे जाते हुए देखती रही
त्रिशंखू की तरह
अधर में लटकी
मैं सोचती रही
और उसे जाते हुए देखती रही!!(21.02.2007)
अस्तित्व
कभी बेटी कभी बहन
कभी पत्नी कभी माँ
टुकड़े हुई ज़िन्दगी में
खुद को दूंढ़ती हूँ
सोचा तो पाया
की मेरा अस्तित्व
इन सब का समावेश तो है ही
मैं बेटी बहन पत्नी माँ तो हूँ ही
परन्तु मैं इन सब से ऊपर भी हूँ
क्या मैं केवल उस युगपुरुष की पसली से जन्मी हूँ
जो स्वयं मेरी कोख से पैदा होता है
मैं उस निराकार भी आकार हूँ
जो मेरे मन में बसता है
मैं सब कुछ हूँ
और सब से ऊपर भी हूँ
क्योंकि मैं हूँ!!!!!!!(07.03.2007)
कभी पत्नी कभी माँ
टुकड़े हुई ज़िन्दगी में
खुद को दूंढ़ती हूँ
सोचा तो पाया
की मेरा अस्तित्व
इन सब का समावेश तो है ही
मैं बेटी बहन पत्नी माँ तो हूँ ही
परन्तु मैं इन सब से ऊपर भी हूँ
क्या मैं केवल उस युगपुरुष की पसली से जन्मी हूँ
जो स्वयं मेरी कोख से पैदा होता है
मैं उस निराकार भी आकार हूँ
जो मेरे मन में बसता है
मैं सब कुछ हूँ
और सब से ऊपर भी हूँ
क्योंकि मैं हूँ!!!!!!!(07.03.2007)
बेखबर
जो नहीं जानते की वो क्या कह रहे हैं
जो नहीं जानते की उन्होंने ने क्या खोया है
ऐसे लोगों पर क्या गुस्सा करें
वो नादाँ तो बेखबर हैं अपने नुक्सान से!!!(21.06.2009)
जो नहीं जानते की उन्होंने ने क्या खोया है
ऐसे लोगों पर क्या गुस्सा करें
वो नादाँ तो बेखबर हैं अपने नुक्सान से!!!(21.06.2009)
एहसास
आज जब गुजरी उस गली से
तो देखा वो मकान जो कभी घर था
दीवारों से लिपटी यादें
चीख-चीख कर पुकार रही थीं
शायद कह रहीं थीं
की कभी इस मकान में हँसी बसती थी
आज हर तरफ मातम का माहौल है
खिड़की दरवाज़ों को छू कर जो हवा आयी है
तुम्हारे न होने का पता बता रही है
आज इस मकान की हर दीवार
तुम्हारे न होने के एहसास तले दबी जा रही है
ढह रहे हैं दरो-दीवार
क्योंकि तुम नहीं हो
शायद यह मकान फिर कभी घर न बन पाए
शायद यहाँ फिर कभी हँसी न बस पाए
क्योंकि तुम नहीं हो
आज गुजरी जब उस गली से
तो देखा वो मकान जो कभी घर था!!!!!(13.03.2009)
तो देखा वो मकान जो कभी घर था
दीवारों से लिपटी यादें
चीख-चीख कर पुकार रही थीं
शायद कह रहीं थीं
की कभी इस मकान में हँसी बसती थी
आज हर तरफ मातम का माहौल है
खिड़की दरवाज़ों को छू कर जो हवा आयी है
तुम्हारे न होने का पता बता रही है
आज इस मकान की हर दीवार
तुम्हारे न होने के एहसास तले दबी जा रही है
ढह रहे हैं दरो-दीवार
क्योंकि तुम नहीं हो
शायद यह मकान फिर कभी घर न बन पाए
शायद यहाँ फिर कभी हँसी न बस पाए
क्योंकि तुम नहीं हो
आज गुजरी जब उस गली से
तो देखा वो मकान जो कभी घर था!!!!!(13.03.2009)
Friday, January 8, 2010
अंश
मेरी कोख से पैदा हुआ
मेरे लहू के कतरों ने जिसे सींचा
मेरे कलेजे का टुकड़ा
मेरा अंश
मेरी ऊँगली पकड़ कर चला
मेरी बातों से हँसा
मैं गीले में सोयी
उसे सूखे में सुलाया
उसके हँसने से हँसी
उसके रोने से रोयी
आज वह कहता है
"माँ तू कुछ मत कह
तेरे पास मेरे लिए वक़्त नहीं
मैं अपनी ज़िन्दगी खुद जी लूँगा
बस मुझे रहने दे, छोड़ दे"
मैं एक माँ---
कलेजे के टुकड़े ने कलेजे के टुकड़े कर दिए
आज बैठी हूँ इन टुकड़ों को समेटने
तो सिवाए दर्द के कुछ नहीं मिलता
इक तीस सी उठती है
और दर्द का एहसास औए गहरा हो जाता है
कहाँ है मेरा वो लाल
जो मेरे लिए कुछ भी कर सकता था
आज इस माँ की व्यथा को कौन समझ सकता है
शायद माँ की नियती यही है
घोंसला छोड़ कर उड़ जाता है इक दिन नन्हा पंछी
माँ बस उसे उड़ कर जाते हुए देखती रहती है!!!!!!!!!!(20.12.2009)
मेरे लहू के कतरों ने जिसे सींचा
मेरे कलेजे का टुकड़ा
मेरा अंश
मेरी ऊँगली पकड़ कर चला
मेरी बातों से हँसा
मैं गीले में सोयी
उसे सूखे में सुलाया
उसके हँसने से हँसी
उसके रोने से रोयी
आज वह कहता है
"माँ तू कुछ मत कह
तेरे पास मेरे लिए वक़्त नहीं
मैं अपनी ज़िन्दगी खुद जी लूँगा
बस मुझे रहने दे, छोड़ दे"
मैं एक माँ---
कलेजे के टुकड़े ने कलेजे के टुकड़े कर दिए
आज बैठी हूँ इन टुकड़ों को समेटने
तो सिवाए दर्द के कुछ नहीं मिलता
इक तीस सी उठती है
और दर्द का एहसास औए गहरा हो जाता है
कहाँ है मेरा वो लाल
जो मेरे लिए कुछ भी कर सकता था
आज इस माँ की व्यथा को कौन समझ सकता है
शायद माँ की नियती यही है
घोंसला छोड़ कर उड़ जाता है इक दिन नन्हा पंछी
माँ बस उसे उड़ कर जाते हुए देखती रहती है!!!!!!!!!!(20.12.2009)
चेहरा
अपना चेहरा ढूँढ रही हूँ
अपने ही वजूद में
ज़िन्दगी से झूझते हुए
जीवन के थ्पड़े सहते हुए
मेरा वजूद न जाने कहाँ खो गया
उसी में मेरा चेहरा भी कहीं गुम हो गया
आज तलाशती हूँ दोनों को
तो सिवाए इमारत के खंडर के
कुछ नहीं मिलता
शायद कहीं भूले से
इन्हीं खंडरों में
कभी अपने वजूद और अपने चेहरे से
साक्षात्कार हो जाए
शायद कभी पहचान पाऊँ
अपने वजूद और अपने चेहरे को
जो कभी मेरे थे!!!!!!!(20.09.2009)
अपने ही वजूद में
ज़िन्दगी से झूझते हुए
जीवन के थ्पड़े सहते हुए
मेरा वजूद न जाने कहाँ खो गया
उसी में मेरा चेहरा भी कहीं गुम हो गया
आज तलाशती हूँ दोनों को
तो सिवाए इमारत के खंडर के
कुछ नहीं मिलता
शायद कहीं भूले से
इन्हीं खंडरों में
कभी अपने वजूद और अपने चेहरे से
साक्षात्कार हो जाए
शायद कभी पहचान पाऊँ
अपने वजूद और अपने चेहरे को
जो कभी मेरे थे!!!!!!!(20.09.2009)
Tuesday, January 5, 2010
Masks
All of us are wearing masks.
The handshakes are a mere formality.
The laughter does not reach the eyes.
The happiness does not stem from the heart.
We change our masks
as we change our clothes.
We are not full of joy
when we meet people.
We are only happy when they leave.
We ask them to come again
and be our guests.
And, when they come again
we want them to leave
and never come back again.
Yes, we have become hypocrites.
How I wish to have those days back
when the handshake was full of warmth,
when genuine laughter shone from genuine malice-free eyes,
and, when happiness was actually felt by a carefree heart.
Hold my hand, my dear
and take me to that time and place
where everything is real and felt truly by the heart.(10.05.2007)
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